SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૩ तत्वार्थ सूत्रे - व ७ त्येवं सप्तपरीपहा अवगन्तव्या तथा च चरित्रमोहनीयकर्मोदयेन अचेलपरीपद: अरतिपरिषदः स्त्रीपरीषदः, निपयापरीपदः आक्रोशपरीषहः याचनापरिपहः सत्कारपुरस्कारपरीपदश्च संजायते अथ पुंवेदोदयादिहेतुकत्वात् अचेलार - तिस्त्रयाक्रोश याचना सरकार पुरस्काराणां मोहोदय हेतुकत्वेऽपि निपधायाः कथं मोहोदय हेतुमविवेद - ? अत्रोच्यते चारित्रमोहोदये सति प्राणिपीडा परिणामस्व संजायमानतया प्राणिपीडा परिहार्थत्वेन निपद्यायाः अपि मोहनीय निमित्तत्वं सम्भवति । तथा च निषीदन्ति - उपविशन्ति यस्यां सा निषद्याउपवेशनादिभूमि रिति रीत्या चारित्रमोहनीय कर्मोदये सति भयोदयात्तरस्थाना विश्वरूपो निपद्यापरीपो भवति ||१४|| (४) निषधा (५) आक्रोश (६) याचना (७) सरकार पुरस्कार | इस प्रकार चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्री परीपर, निषद्यापरीषह, आक्रोशपरीषह, याचनापरीषह, और सरकार पुरस्कारपरीषद उत्पन्न होते हैं । शंका- अचेल, अति, स्त्री, आक्रोश, याचना और सत्कार पुरस्कार पुरुपवेद आदि के उदय से होते हैं, इस कारण उन्हें मोहोदय हेतुक कहा जा सकता है, मगर निषद्यापरीपर को मोहोदय हेतुक कैसे कह सकते है ? समाधान- चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से प्राणियों को पीडा पहुंचाने का परिणाम उत्पन्न होता है और निषद्या प्राणिपीड़ा का परिहार करने के लिए है, उसे निमित्त कह सहते हैं। जिसमें निपीड़न-उपवेशन अर्थात् ठहरना-बैठना आदि किया जाय वह निषेद्या कहलाती है | चारित्रमोहनीय कर्म का उदय होने पर भय के (4) भाडोश (१) यायना (७) सत्र पुरस्कार मानीते यारित्र मोहनीय કના ઉદયથી અચેલપરીષહ, અરતિપરીષહ, શ્રીપરીષહ નિષદ્યાપરીષહ, આક્રોશપરીષહ, યાચનાપરીષદ્ધ અને સત્કાર પુરસ્કાર પરીષહ ઉત્પન્ન થાય છે. शंभ- भयेस, भरति, सी, माझेश, यायना भने सत्कार पुरस्ार પુરૂષવેદ આદિના ઉદયથી થાય છે આથી તેમને મેહેદય હેતુક કહી શકાય છે, પરન્તુ નિષદ્યાપરીષદ્ધને મેહેાદયહેતુક કેવી રીતે કહી શકાય ? સમાધાન–ચારિત્ર મે હનીય કર્માંના ઉદયથી પ્રાણિએને દુઃખ પહેાંચાઢવાનુ પરિણામ ઉત્પન્ન થાય છે અને નિષદ્યા પ્રાણિપીડાના પરિહાર કરવા માટે છે, આથી તેને મેાહુ નિમિત્તક કહી શકીએ છીઅ, જેમાં નિષદન ઉપવેશન અર્થાત્ રાકાનું એકવું વગેરે કરવામાં આવે તે નિષદ્યા કહેવાય
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy