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________________ १७० - तस्वार्थको फाच्चा-ऽनित्याच्चा-ऽहं खलु चेतनो नित्योऽपौगलिको-ऽतीन्द्रियश्चान्योऽस्मिक शरीरं खलु-चक्षुशादीन्द्रिश्नाचं भवति' अहन्त्वात्मा जीवो न चारादीन्द्रियग्राह्योऽरिम शरीरस्येन्दिर मावस्यात्-आत्मनः इन्द्रियग्राह्यत्वाऽभावाद । एवं खल्लु शरीरमनित्यम्-महन्तु-नित्यः, शरीरमझम्-अहं पुनर्णोऽस्मि, शरीरं दिलबर -सादिनिधन, अहन्तु-अनाधनिधनो-जन्ममरणरहितोऽस्मि, शरीर स्योत्पादविनाशिस्वगत् , आपनधोत्पादविनाशरहितश्वात्, वहूनि मे संसारे परि:: नमता शरीराणि व्यतीखानि, नहि प्राक्तनजन्मशरीराणि-अधुनातनजन्मशरीराणि सम्भवन्ति-असम्भवात् । अहन्तु-स एबाऽस्मि येन प्राक्तनजन्मशरीराणि पूर्व - (५) अन्य स्थानुप्रेक्षा---अन्यत्व अर्थात भिन्नता का विचार करना अन्यत्यानुपेक्षा है। यथा- औदारिक आदि पांचों शरीर पुद्गल के पिंड है, जड हैं और अनित्य हैं, मैं चैतन्यस्वरूप, नित्य, अपौद्गलिक और अतीन्द्रिय हूं। यह औदारिक शरीर चक्षुरिन्द्रिय आदि से ग्राह्य है जिन्तु मैं-आत्मा-जीच, इन्द्रियों से अगोचर हूं। शरीर इन्द्रियः गोचर है, आत्मा इन्द्रियअगोचर है। फिर यह शरीर अनित्य है, मैं नित्य हूं। शरीर अज्ञ है, मैं ज्ञ हूं। शरीर सादिनिधन है-उसकी आदि और अन्त है, मैं अनादि निधन हूं, जन्म-मरण से अतीत हूं, शरीर उत्पाद-विनाशशील है, मैं उत्पाद और विनाश से रहित, हूं। इस संसार में अनादि काल ले भ्रमण करते हुए मैंने अनन्तअनन्त शरीर ग्रहण किये और त्यागे हैं। पूर्वजन्म के शरीर इस जन्म के शरीर नहीं बनते-ऐसा होना संभव नहीं कि पूर्वजन्म का (૫) અન્યાનુપ્રેક્ષા-અન્યત્વ અથવા ભિન્નતાને વિચાર કરે અન્ય ત્યાનુપ્રેક્ષા છે જેમ કે-દારિક વગેરે પાંચે શરીર પુગલના પિણ્ડ છે; જડ છે અને અનિત્ય છે, હું ચૈતન્યસ્વરૂપ, નિત્ય અપૌગલિક અને અતીન્દ્રિય છું. આ ઔદારિક શરીર ચક્ષુરિંદ્રિય આદિથી ગ્રાહ્ય છે પરંતુ હું–આત્મા प, छन्द्रियाथी मगाय२ छे. पणी मी श६१२ मनित्य छ, हू नित्य : શરીર અજ્ઞ છે. હું જ્ઞ છું. શરીર સાદિનિધન છે–તેને આદિ અને અત્તવાળું है, हुम न छु, ४.भ-भ२५थी मतीत छु, शरीर अत्याह-विनाशશીલ છે, હું ઉત્પાદ અને વિનાશથી રહિત છું. આ સંસારમાં અનાદિકાળથી ભ્રમણ કરતા મેં અનન્ત-અનન્ત શરીર ધારણ કર્યા અને ત્યાગ્યા છે. પૂર્વજન્મનું શરીર આ જન્મનું શરીર બનતું નથી. એવું બનવું સંભવિત પણ નથી કે પૂર્વજન્મનું શરીર આ જન્મમાં કામ આવી શકે પરંતુ હું તે
SR No.010523
Book TitleTattvartha Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size73 MB
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