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________________ Rom ___{ २० । षट् द्रव्य निरूपण . मूल-जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे ।। ____एगंजिणिज अप्पाणं, एस से परमो जत्रो ॥७॥ छाया-यः सहस्त्रं सहस्त्राणां, सङ्ग्रामे दुर्जये जयेत् । एकं जयेदात्मानं, एपस्तस्य परमो जयः ॥ ७ ॥ ____ शब्दार्थ-~जो मनुष्य कठिनाई से जीते जाने वाले युद्ध में लाखों योद्धाओं को जीत लता है उससे भी अधिक बलवान् एक अपनी आत्मा को जीतने वाला है। उसकी यह आत्म-विजय उत्कृष्ट विजय है । (७.) भाष्य-श्रात्म-दमन या आत्म विजय का उपाय और फल बताने के पश्चात् सूत्रकार ने उसकी श्रेष्ठता का यहाँ प्रतिपादन किया है । प्रकृत गाथा में भौतिक विजय और आध्यात्मिक विजय की तुलना की गई है और आध्यात्मिक विजय को परम विजय निरूपण किया है । जिस प्रकार वाह्य जगत् में राजाओं अथवा विरोधी दलों के संग्राम होते हैं . उसी प्रकार प्राध्यात्मिक जगत् में आत्मा की स्वाभाविक और वैभाविक शक्तियों में या... सद्गुणों और दुर्गणों में भी संग्राम होता है । भौतिक संग्राम कभी कभी होता है किन्तु आध्यात्मिक संग्राम प्रतिपल-निरन्तर मचा रहता है। अनादि काल से यह संग्राम चल रहा है। एक पक्ष के सर्वथा पराजित होने पर वाहा संग्राम समाप्त हो जाता है उसी प्रकार यह श्राध्यात्मक संग्राम उस समय लमाप्त होता है जब कोई एक पक्ष पूर्ण रूप से पराजित हो जाता हैं। आत्मा की वैभाविक शक्तियाँ अगर विजय प्राप्त कर लेती हैं तो श्रात्मा को निमोद के अंधेरे कारागार में बंद होना पड़ता है। यदि आत्मा की स्वाभाविक शक्तियों को विजय-लाभ होता है तो वैभाविक शक्तियों का विनाश हो जाता है और श्रात्मा पूर्ण रूप से निष्कंटक हो कर सिद्धि-क्षेत्र का विशाल और अक्ष. . . य साम्राज्य प्राप्त करता है। भौतिक युद्ध में जैसे अनेक योद्धा परस्पर में भिड़ते हैं उसी प्रकार श्राध्यात्मिक युद्ध में भी दोनों ओर के अनेकानेक योद्धा जूझते हैं। महाराज चेतन की ओर से सस्यक्त्य, रत्नत्रय, समिति, गुप्त, अप्रमाद, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्षा प्रादि योद्धा होते हैं और दूसरी ओर कामराजा की तरफ से मिथ्यात्व,मढ़ता, मोह ममत्व, प्रमाद, ऋार्त-रोद्र ध्यान कपाय आदि सुभट जुटते हैं । इस श्राध्यात्मिक युद्ध का परिपूर्ण रूपक 'मकरध्वज पराजय' नामक नाटक में मुमुत्तुओं को देखना चाहिए । .. संसारी जीव वाह्य जगत् में होने वाले संग्राम में जितनी दिलचस्पी लेते हैं यही नहीं सात समुद्र पार की लड़ाई का वर्णन जितनी उत्सकता से पढ़ते हैं उसले श्राधी उत्सुकता अगर उन्हें अपने अन्दर निरन्तर जारी रहने वाले भीषण संग्राम में हो तो उनका बेड़ा पार हो जाय । यह श्राध्यात्मिक युद्ध चर्म-चनुत्रों से नहीं देखा जा सकता, इसे देखने के लिए जगत की ओर से आँखें मांच कर अन्तदृष्टि बनना
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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