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________________ नरक-स्वर्ग-निरूपण वैमानिक देवों की स्थिति ( श्रायु ) इस प्रकार है:६.१ ) साधम. ज. एक पल्योपम उ० दो सागरोपम (२) ऐशान " ,ले कुछ अधिक ल कुछ अाधक , , से कुछ अधिक (३) सनत्कुमार , दो सागर , सात सागर (४) माहेन्द्र . , ,, (कुछ अधिक) , , (कुछ अधिक) (५) ब्रह्म सात सागर (६) लान्तक दल सागर चौदह सागर ७) महाशुक्र चौदह सागर , संत्ताह सागर (८) सहस्त्रार सत्तरह सागर " अठारह सागर (६) भानत , अठारह सागर उन्नीस सागर (१०) प्रारणत उन्नील सागर , बील सागर (११) भार , बीस सागर ,इक्कीस सागर -(१२) अच्युत ,. इक्कीस सागर , बाईस सागर इन देवलोकों की स्थिति देखने से ज्ञान होगा कि पिछले देवलोक में जितनी उत्कृष्ट श्रायु है, धागे के देवलोक में उतनी जघन्य घायु है। नव प्रेदयक विमानों में एक-एक लागर की आयु बढ़ती जाती है और नववे ग्रेबेयक में इकतीस सागर की उत्कृष्ट स्थिति है। अर्थात प्रथम त्रैवेयक में जघन्य बाईस सागर, उत्कृष्ट तेईस सागर, इसी क्रम ले नौ ही ग्रेवयकों में एक-एक सागर की वृद्धि होती है। पांच अनुत्तर विमानों में से पहले के चार विमानों के देवों की जघन्य श्रायु इकतीस सागर की है और उत्कृष्ट बत्तीस लागर की है। पांचवे सर्वार्थ सिद्धि विमान में जघन्य-उत्कृष्ट का भेद नहीं हैं । वहां के समस्त देवों की तेतीस सागर की ही स्थिति होती है। देवगति में लांसारिक सुखों का परम प्रकर्ष है। वहां नियत प्रायु अवश्य भोगी जाती है-अकाल मृत्यु नहीं होती । देव, मृत्यु के पश्चात नरक गति में नहीं जाते । सम्यक्त्व. संयमासंयम, वाल तप और अकाम निर्जरा श्रादि कारणों से देवगति प्राप्त होती है । देवगति में मिथ्यादृष्टि देव भी होते हैं और सम्यग्दृष्टि भी मिथ्यादृष्टि देव तिर्यञ्च आदि गतियों में उत्पन्न होकर संसार भ्रमण करते हैं और कोई-कोई सम्यग्दृष्टि देव वहां से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मुक्ति प्राप्त करते है, कोई भरतक्षेत्र में मनुष्य होकर, मोक्ष गमन योग्य काल की अनुकूलता हो तो मुक्त होते है अथवा पुनः देव लोक में जाते हैं। देवगति का विस्तार पूर्वक वर्णन अन्य शास्त्रों में देखना चाहिए । यहां संक्षिप्त कथन ही किया गया है। मूलः-जेसिं तु विउला सिंक्खा, मूलियं ते अइथिया। सीलवंता सवीसेसा, प्रदीणा जति देवयं ॥ २७॥
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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