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________________ intelABANARULSICALCDaanedantermediateatin सोलहवा अध्याय जिस के द्वारा प्राप्त होते हैं, उस मृत्यु से लत्पुरुषों को भय क्यों होना चाहिए ? शागआंद दुःखसन्तप्तः प्रक्षिप्तो देहपारे । - जात्या विमुच्यतेऽन्येन सृत्यु भूमिपति बिना ॥ अर्थात:- गर्भ से लेकर अब तक कर्म रूपी शत्रु ने शात्मा को शरीर रूपी कारागार में कैद कर रखा था। मृत्यु रूए राजा के सिवाय भात्मा को कौन उस्त फैखाले ले छुड़ा सकता है ? . जीर्ण देहादिक सर्व, नूतन ज्यामते यतः । ल मृत्युः किं न मोदाय,सतां सातोत्थितियथा ॥ . अर्थात् जिसकी कृपा ले जीर्ण-शीर्ण शरीर और इन्द्रियां नष्ट होकर नवीन्द्र देह और इन्द्रियों की प्राप्ति होती है, वह सुखप्रद मृत्यु सत्पुरुषों के आनन्द का कारण क्यों न हो। इस प्रकार परमार्थ-दृष्टि से विचार करके ज्ञानी पुरुष मृत्यु श्राने पर रोतेचिल्लाते नहीं है, किन्तु उसका मित्र की भांति स्वागत करते हैं । यही कारण है कि मृत्यु उनके लिए महोत्सब रूप है। किसान बीज बोता है और तत्पश्चात् अत्यन्त परिश्रम के साथ उसकी रक्षा करता है । धान्य जब सफल होकर, पककर स्मुखने लगता है तब उसे दुःख नहीं होता । वह यह नहीं सोचता कि-'हाय ! मेरा हरा-भरा खेत सूख रहा है ।' प्रत्युत अपने श्रम को सार्थक होते देखकर उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहता। वह समझता है कि गर्मी, सर्दी और वर्ग का कए सहन करने का जो उद्देश्य था वह अब पुरा होने जा रहा है। इसी प्रकार हानी पुरुष जीवन-पर्यन्त जो दान, ध्यान आदि शुभ अनुष्ठान करता है, और संयम की रक्षा करने में नाना प्रकार के परीषद एवं उपसर्ग सहन करता है, उसका फल मृत्यु के समय ही उसे प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में वह दुखी न होकर प्रसाल ही होता है। शास्त्र में कहा है मरणं पि सपुरणारा, जदा मेयमगुस्सुयं । विप्प सरणामणाधायं, संजयाण सीमओ ।। अर्थात्-जिन पुण्यवान और संयमी पुरुषों ने अपना जीवन छानी जनों द्वारा • प्ररूपित धर्म के अनुसार व्यतीत किया है, उनका मरण प्रसन्नतापूर्ण और सर प्रकार के श्राघात से रहित होता है। उन्हें इस बात का विश्वास है कि जीवन में भाररित .. शर्मकार्य का फल उन्हें अवश्य ही प्राप्त होगा। तोर्स सोया सपुजाणं, संजयाण घुसीमनो। न संतसंति मरणते, सीलवंता यहुस्सुया ॥ तुलिया विसेसमादाय, दया-धम्मस्स नतिए । विप्पसीपज मेहावी, तहाभूएण: अपपणा ॥
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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