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________________ मनोनिग्रह मूल:-गंधेसु जो गिद्धि मुवेइ तिब्वं, . अकालिअं पावइ से विणास। रागाउरे भोसहिगंधगिद्धे, सप्पे बिलाश्रो विव निक्खमंते ।। १६ ॥ छाया:-गन्धेधु यो वृद्धिमुपैति तीवाम, कालिक प्राप्नोति स बिनाशम् । रागातुर औषधगधगृद्धः, सो विलादिव निष्क्रामन् ॥ १६ ॥ शब्दार्थ:-नाग दमनी औषधि की गंध मन्न होने से आतुर सर्प बिल से बाहर . निकलने पर नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार जो जीव गंध में तीव्र गृद्धता को प्राप्त होता है वह असमय में ही मृत्यु का पात्र बनता है। भाष्यः-~श्रोत्रेन्द्रिय के अपाय का निरूपण करने के लिए यहां नाणेन्द्रिय के . अपाय का निरूपण किया गया है। जैसे सांप घ्राणेन्द्रिय के अंधीन होकर नागदमनी औषध की गंध संधने के . लिए बिल से बाहर निकला और मारा जाता है, भ्रमर आदि गंध के लोलुप जीक कमल के फूल में कैद हो जाते और मृत्यु के मेहमान बनते हैं। इसी प्रकार जो अन्या जीव गंध में तहव श्रासक्ति वाले होते हैं उन्हें अस्सलय में ही मृत्यु का प्रालिंगन करना पड़ता है। इस प्रकार विचार कर नाणेन्द्रिय को वश में करना चाहिए और मंध में राग द्वेष का त्याग करके लमभाव धारण करना चाहिए। मूलः-रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालिनं पावइ से विणास। रागाउरे वडिसविभिन्नकाये, मच्छे. जहा प्रामिसभोगगिद्धे ॥ १७ ॥ छाया: रसेंधु यो गृद्धिमुपैति तीव्राम, कालिकं प्राप्नोति सविनाशन् । .. रागात बंडिशविभिन्न कायः, मत्स्यो यथाऽऽम्पिभांगगृद्धः ॥ १७ ॥ शब्दार्थ:--जैसे मांस-सक्षण के स्वाद में लोलुप, राग से आतुर मत्स्य, कांटे में विंधकर नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार जो जीव रस में तीन आसहि रखता है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। भाष्यः-इस गाथा का अर्थ पूर्ववत् ही समझना चाहिए । यहां जिह्वा की लोलुपता के लिए मच्छ का इष्टान्त दिया गया है । मच्छीमार मञ्छ को पकड़ने के लिए कांटे में शाटा या मांस का टुकड़ा लगा लेता है और कांटा पानी में डाल देता है। जिता लोलुप मच्छ श्वाटे या मांस के लोभ ले कांटे में फंस जाता है, उसका
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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