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________________ प्रथम अध्याय - कदापि नहीं। इससे यह स्पष्ट हुआ कि पदार्थों को जानने के लिए केवल इन्द्रियाँ और मन ही साधन नहीं है किन्तु इनके अतिरिक्त अन्य साधन भी हैं । आकाश, काल श्रादि पदार्थ जैसे इन्द्रिय-ग्राह्य न होने पर भी विद्यमान हैं उसी प्रकार प्रात्मा भी विद्यमान है। इन्द्रियों की शक्ति अत्यन्त परिमित है । स्पर्शन-इन्द्रिय सिर्फ स्पर्श को, रसना इन्द्रिय रस को, घ्राण-इन्द्रिय गंध को, चक्षु-इन्द्रिय रूप को और श्रोत्र इन्द्रिय सिर्फ शब्द को ग्रहण करती है । रूप, रस, गंध और स्पर्श आदि सिर्फ जड़ पुद्गल में ही पाये जाते हैं अतएव उसी को इन्द्रियाँ ग्रहण कर पाती हैं । पुल भी जो सूक्ष्म या श्रणु रूप होते हैं उन्हें भी इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकती । अतएव सिर्फ इन्द्रियों को और उनके अनुगामी सन को ही ज्ञान का साधन मान लेना पर्याप्त नहीं है। अरूपी और सूक्ष्म रूपी पदार्थों को जानने के लिए अन्यान्य साधन स्वीकार करने पड़ेगें । श्रात्मा इन्द्रिय-ग्राह्य गुणों से अर्थात् रूप आदि से रहित है। प्राचारांग सूत्र में कहा हैः ‘से ण दोहे, ण हस्से, ण वहे; न तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले, रण किरहे, ण णीले, ण लोहिए, ण सुस्किल्ले, ण सुरहिगंधे, ण दुरहिगंधे, ण तित्ते, ण कडुए, ण कलाए, ण विले, ण महुरे, ण कक्खड़े, ण म उए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उरहे, ण णिद्दे, रण लुक्ने, ण काओ, ण रुहे, ण संगे, ण इत्थी, ण पुरिसे,... ... ... अरूची सत्ता.............. से ण सद्दे, ग रूचे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे।" अर्थातः-आत्मा न लम्वा है, न छोटा है, न गोल है, न तिकोना है,न चौकोर है. परिमंडल है, न झाला है, न नीला है, न लाल है, न सफेद है, (अर्थात् चतुइन्द्रिय, ब्राह्य गुणों से रहित है ) न सुगंधी है, न दुर्गधी है, (घ्राण-ब्राह्य गुणों से रहित है), न तिक्त है, न कटुक है, न कसायला है, न खट्टा है, न मीठा है, (जिह्ना इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है । न कठोर है, न कोमल है, न भारी है, न हल्का है, न ठंढा है, न गर्म है, न चिकना है, न रूखा है, (अर्थात्:-स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता ) न शरीर है, न उत्पादवान् है, न किसी से सम्बन्ध है, न स्त्री है, न पुरुष है। ....."वह श्ररूपी सत्ता है । ............."आत्मा शब्द नहीं है, रूप नहीं है, गंध नहीं है, रस नहीं है, स्पर्श नहीं है।" तात्पर्य यह है कि:-उल्लिखित गुण पुद्गल के हैं और श्रात्मा पुद्गल रूप न होने के कारण इन समस्त गुणों से अतीत है-अरूपी है- अमूर्तिक है और इसी कारण वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। शंका:-इन्द्रियों के द्वारा श्रात्मा का ग्रहण नहीं होता तो उसे किस प्रकार जाना जा सकता है ? समाधान:-अनुभव-प्रत्यक्ष से, योगी प्रत्यक्ष से, अनुमान प्रमाण ले और यागम प्रमाण से श्रात्मा का अस्तित्व प्रमाणित होता है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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