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________________ [ ४३४ ] ऐसी दशा में जगत् का निर्माण होना ही असंभव ठहरता है 1 भाषा-स्वरूप वन शंका- देव कभी उत्पन्न ही नहीं होता। वह अनादि काल से है । अतएव उसकी उत्पत्ति संबंधी चर्चा करना ही निरर्थक है । समाधान - यदि देव अनादि है तो लोक को भी श्रनादि क्यों न मान लिया जाय ? देव को अनादि कालीन मानने में कोई बाधा नहीं आती तो लोक को अनादि मानने में क्या बाधा आ सकती है । देव अगर अनादि है तो यह बताइए कि वह नित्य है या अनित्य है ? अगर देव नित्य है तो वह जो कार्य करता है सी एक के पश्चात् दूसरा, दूसरे के पश्चात् तीसरा, इस प्रकार क्रम से करता है, या समस्त कार्यों को एक ही साथ कर डालता है । यदि यह माना जाय कि देव क्रम से एक-एक क्रिया करता है तो यह श्राशंका होती है कि वह एक क्रिया करते समय, दूसरी क्रिया करने में समर्थ है या समर्थ है ? अगर समर्थ है तो फिर धीरे-धीरे एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी क्रिया क्यों करता है ? सब क्रियाएँ एक ही साथ क्यों नहीं कर डालता ? अगर एक क्रिया के समय दूसरी क्रिया करने में देव को असमर्थ माना जाय और एक क्रिया पूरी हो जाने पर दूसरी क्रिया करने में समर्थ मान लिया जाय तो उसकी नित्यता समाप्त हो जाती है । एक समय वह असमर्थ होता है और दूसरे समय समर्थ हो जाता है तो वह नित्य कैसे रहा ? नित्य तो आपके मत से वही कहलाता है जो सदा काल एकान्त एक रूप बना रहे । आपका यह देव सदा एक सा नहीं रहता- कभी समर्थ और कभी असमर्थ हो जाता है, ऐसी स्थिति में उसे नित्य किस प्रकार माना जा सकता है ? देव समस्त क्रियाएँ एक साथ कर डालता है, ऐसा माना जाय तो जितनी भी क्रियाएँ उसे करनी हैं, वे सब एक ही क्षण में समाप्त हो जाएंगी, फिर दूसरे क्षण में वह क्या करेगा ? अर्थ-क्रिया करना ही वस्तु का स्वभाव है । अगर दूसरे क्षण मैं वह कुछ भी नहीं करता तो उसे श्रवस्तु-वन्ध्या-पुत्र की भांति कुछ भी नहीं - श्रस्तित्वहीन, स्वीकार करना होगा । यदि यह माना जाय कि देव तो एक साथ समस्त क्रियाएँ करने में समर्थ है, किन्तु विभिन्न कार्यों के सहकारी कारण जब विद्यमान होते हैं तब वह कार्य करता है और जब सहकारी कारण नहीं होते तो कार्य नहीं करता। जैसे बीज में अंकुर को उत्पन्न करने की शक्ति तो सदा रहती है, परन्तु पृथ्वी, पानी, आदि सहायक कारण मिलने पर वह अंकुर को उत्पन्न करता है, उनके बिना नहीं कर सकता | यहां यह जानना जरूरी है कि सहायक कारण वीज में कोई विशेषता उत्पन्न करते हैं या नहीं करते ? अगर कोई विशेषता उत्पन्न नहीं करते तब तो उनका होना वृथा 'है - निरर्थक हैं । ऐसे निरर्थक सहायकों की प्रतीक्षा करने से बीज कभी अंकुर को उत्पन्न ही नहीं कर सकेगा। अगर सहायक कारण चीज में कोई विशेषता उत्पन्न
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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