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________________ ग्यारहर्वा अध्याय [ ४०६ बाहा पदार्थ और ज्ञान आदि रूप श्रान्तरिक पदार्थों की सत्ता ही नहीं है। शन्द ही विभिन्न वस्तुओं के रूप में प्रतिभालित होता है। किन्तु यह मत प्रमाण से विरुद्ध है। शब्द की पौगालिकता का समर्थन पहले किया जा चुका है और प्रथम अध्याय में स्वतंत्र आत्मा की भी सिद्धी की जा चुकी है । अतएव यहां इस विषय का विस्तार करना अनावश्यक है। विज्ञान द्वारा श्राविष्कृत यन्त्रों से शब्द का ग्रहण होता है, यह आधुनिक काल में प्रत्यक्ष हो चुका है। यंत्र पुद्गल रूप है और उनके द्वारा पुद्गल ही पकड़ में श्रा सकता है, अन्य कोई भी वस्तु यंत्रों द्वारा ग्रहण नहीं की जा सकती। इससे भी शब्द की पौद्गलिकता असंदिग्ध हो जाती है। ऐसी अवस्था में शब्द को ही मान आदि रूप मानना सर्वथा श्रयुक्त है। निक्षेपों के आधार से भाषा के चार भेद हैं--(१) नाम भाषा (२) स्थापनाभापा (३) द्रव्य भाषा और भाव मापा । किसी वस्तु का 'भाषा' ऐसा नाम रख देना नाम भाषा है । पुस्तक श्रादि में लिखी हुई भापा स्थापना भापा है। द्रव्य भापा दो प्रकार की है-(१) श्रागम द्रव्य भापा और (२) नो-पागम द्रव्य भाषा । जो भाषा का ज्ञाता दो किन्तु उससे अनुपयुक्त (. उपयोग रहित ) हो उसे श्रागम द्रव्यभाषा कहते हैं। नो आगम द्रव्य भाषा के तीन भेद हैं (१) शरीर (२) भव्य शरीर और (३) तव्यतिरिक्त । भाषा के अर्थ को जानने वाले पुरुष का निर्जीव शरीर तो आगम शरीर द्रव्य भाषा है। जो भविष्य में भापा का अर्थ जानेगा ऐसे पुरुष का शरीर नो भागम भव्य शरीर द्रव्यमापा है। तद्व्यतिरिक्त नो भागा द्रव्य भाषा के भी तीन भेद हैं-(१) ग्रहण (२) नि:सरण और (३) पराधान । वचन योग के परिणमन वाले आत्मा द्वारा ग्रहण किये हुए भाषा द्रव्य को ग्रहण कहते हैं। कंठ आदि स्थानों के प्रयत्न से त्यागे हुए भाषा द्रव्य को निस्सरण कहते हैं । त्यागे हुए भाषा द्रव्यों से वासित हुए, भापा द्रव्य रूप से परिणत द्रव्य एराधान कहलाते हैं। उपयोगवान पुरुप की भाषा भाव-भाश कहलाती है क्योंकि उपयोग एक प्रकार का भाव है। भावमापा तीन प्रकार की है-(१) द्रव्याधित (२) धुताश्रित मौर (३) चारित्राश्रित । (१) द्रव्याश्रित भाव भाषा-द्रव्याश्रित भाव भापा के चार भेद -(१). सत्य भाषा (२) असत्य मापा (३) सत्यासत्य (मिश्र) भापा और (8) असत्यामृपा (व्यावहार) मापा। (क) सत्यभापा-यथार्थ वस्तु तत्व को स्थापित करने के अभिप्राय से, सिद्धान्त के अनुसार जो भाषा बोली जाती है वह सत्य भारा कहलाती है। जैसे-आत्मा स्वरूप से सत् है और पर रूप से असत् है। (च) असत्य भापा-सत्य से विपरीत अर्थात् सिद्धान्त विरुद्ध भापा असत्य भाषा दलाती है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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