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________________ ४५६ १२ ४१७ २३ " का गंध " का स्पर्श ४५६ ४२१ ४२२ ४२६ ५ भाषा के चार भेद ४०६ ४ कृष्ण लेश्या का स्वरूप ६ सत्य भाषा के दस भेद ४१० | ५ नील लेश्या , ४५४ ७ असत्य भाषा के चार भेद ४११ ६ कापोत लेश्या , दल भेद ४१२ ७पीत लेश्या , ६ सत्यासत्य भाषा के दस भेद - ४१३ | ८ पद्म लेश्या , ४५७ १० व्यवहार भाषा के बारह भेद , ४१५ | शुक्ल लेश्या , ४५७ ११ श्रुताश्रित भाव भाषा ४.६/ १० लेश्याओं के वर्णन १२ चारित्राश्रित भाव साषा ४१६ ४५६ १३ भाषा का आदि करण ४९७ १४ वोलने योग्य भाषा '४५६ १५ न बोलने योग्य भाषा ४१८ " का परिणाम . ४६० १६ बोलने का विवेक १५ लेश्या और परलोक १७ वचन-कराटक १६ गतियों में लेश्या ४६३ १८ भाषण संबंधी नियम १७ लेश्या वाले जीवों का अल्प १६ बहुभाषी की दुर्गति वहुत्व २० कुशील और विष्टा ४२७ १८ लेश्याओं में गुणस्थान २१ स्वदोष संस्बधी सत्य भाषण ४२८ १६ लेश्या और गति ४६६ २२ ज्ञानियों के विरुद्ध व्यवहार ४२६ | २० अंशों में विविधता ४६७ . २३ सृष्टि संबंधी विभिन्न कथन ४३१ २४ कर्तृत्व का निरसन तेरहवां अध्याय-कषाय वर्णन . २५ ईश्वर कर्तृत्व का निरसन २६ प्रकृति के कर्तृत्व का निरसन १ कषाय की व्युत्पति २७ कालवादी का पक्ष ४४४ २ कषाय के मुख्य भेद २८ नियतिवादी का पक्ष ३ क्रोध, मान, माया, लोभ २६ यदृच्छावादी का मत ४ क्रोधादि के भेद ३० स्वयंभू-कर्तृत्व का खंडन ??? ५ कपायों का कार्य ૪૭૨ ३१ अंडे से जगत् की उत्पत्ति ६ क्रोध का कुफल का निरसन ७ मान का वर्णन ४७४ ३२ सृष्टि से पहले क्या था ? ८माया से पापोपार्जन ३३ लोक का स्वरूप है लोभ की मर्यादा । ३४ लोक की नित्यता | १० क्रोधादि का फल ४८. वारहवां अध्याय-लेश्या स्वरूप निरूपण | ११ क्रोधादि को जीतने का उपाय ४८३ | १२ धर्म शरण है ४८५ १ लेश्या का अर्थ १५१ १३ घन त्राता नहीं है ४८६ २ लेश्या के मूल भेद .४५१ | १४ अनुकरण-वृत्ति ४८६ ३ लेश्या के दो दृष्टान्त ४५२ | १५ काल की प्रबलता ४५६ ४६४ ४३६ ४४२ ४४४ ४४५ ४६६ ४७१ ४४७ ४४ ४४६। ४७३ ४५० ४७६
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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