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________________ ভূষা স্বাস্থ [ ३६६ ] (१) स्त्री जाति कथा-व्राह्मण श्रादि जाति की स्त्रियों की प्रशंसा करना अथवा लिन्दा करनर । (२) स्त्री कुल कथा-किसी विशेष कुल की स्त्रियों की प्रशंसा करना अथवा निन्दा आदि करना। (३) स्त्री रूप कथा-भिन्न भिन्न देश की स्त्रियों के रूपों का बखान करना अथवा स्त्रियों के अंगोपांगो का वर्णन करना । (४) स्त्री वंश कथा-नियों की वेणी श्रादि का वर्णन करना या विभिन्न देशों के स्त्री संबंधी पहनावों का वर्णन करना। स्त्री कथा करने से तथा सुनने से मोह की उत्पत्ति होती है । लोक में निन्दा होती है। ब्रह्मचर्य का विघात होता है। स्त्री कथा करने वाला संयम से भ्रष्ट हो जाता है, कुलिंगी हो जाता है या संयमी के वेश में रहकर घोर असंयम का सेवन करता है। (२) भक्त कथा--भक्त कथा अर्थात् भोजन संबंधी कथा करना। इसके भी चार भेद हैं-(१) आवाय कथा (२) निर्वाय कथा (३) श्रारंभ कथा और (४) निष्ठान कथा। (३) श्राबाय भक्त कथा-भोजन बनाने की विधि का निरूपण करना, जैसे अमुक भोजन बनाने में इतनी शस्कर, इतना वृत, आदि लगता है। (२) निर्वाय अस्त कथा-संसार में इतने पक्वान्न हैं, इतनी तरह की मिठाई होती हैं, आदि-आदि कहना। (३) प्रारंभ भक्त कथा-पोजन संबंधी प्रारंभ की कथा करना, जैसे इल भोजन में इतने जीवों की हिंसा होगी, शादि। (४) मिष्ठान भक्त कथा-इस भोजन के तैयार होने में इतना धन व्यय होगा, . आदि कथन करना। आहार संबंधी कथा करने से जिह्वा-लोलुपता की चद्धि होती है। प्रारंभ आदि दोषों का भागी होना पड़ता है । आहार-लोलुपता त्यागने के लिए भक्त कथा का त्याग करना आवश्यक है। (३) देशकथा-देश कथा भी चार प्रकार की है। प्रथा-(१) देश निधि कथा (२) देश विकल्प कथा (३) देश छंद कथा और (४) देश ने पथ्य कथा । (९) देश विधि कथा-विभिन्न देशों को भोजन, भूमि आदि की रचना का वर्णन करता, वहां भोजन के शारंभ में क्या किया जाता है, क्या-क्या वस्तु खाई जाती है, आदि कथन करना। (२) देश विकल्प कथा-किस-किस देश में कौन-कौन सा धान्य उपजता है, - इत्यादि चखान करना तथा विभिन्न देशों के मकान, कूप, तालाव श्रादि का वर्णन करना।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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