SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३५४ ] 'कहते हैं । वे मुनि ध्यान करने के योग्य हैं । आचार्य की यह परिभाषा तीर्थकर भगवान् में पूर्ण रूप से घटित होती है, अतएव सामान्य की अपेक्षा से उन्हें श्राचार्य कहा गया है । जैसे आचार्य को सामान्य रूप से सांधु कहा जा सकता है उसी प्रकार अरिहन्त तीर्थंकर भगवान् को आचार्य भी कहा जा सकता है । अथवा यहां श्री गौतम एवं सुधर्मा स्वामी से तात्पर्य है । साधु-धर्म निरूपण शंका-- यहां प्राचार्य - सम्मत गुणों के पालन करने का विधान किया है, सो वे गुण कौन-कौन से समझने चाहिए ?: समाधान——इस अध्ययन में जिन गुणों का साक्षात् निरूपण किया गया है, उन पांच महाव्रत आदि का तथा उनके अतिरिक्त साधु की द्वादश प्रतिमाओं ( पडि - . मानों ) का, करणसत्तरी, चरणसत्तरी का, आठ प्रभावनाओं का, तथा अन्य शास्त्रोक्त आचार का यहां ग्रहण करना चाहिए । इनमें से साधु की बारह पडिमाएं इस प्रकार हैं- (१) पहली पडिमा में साधु को एक मास तक एक दत्ति ( दात ) आहार लेना चाहिए । अर्थात् श्राहार देते समय दाता एक बार में जितना श्राहार देदे उतने ही आहार पर निर्वाह करे और एक बार में, बिना धार टूटे जितना पानी मिल जाय, उसी पानी का उपभोग करे । जैसे -- किसी दांता ने पहले एक बार सिर्फ एक चम्मच दाल दी तो उसके पश्चात् कुछ भी ग्रहण न करे, उतनी ही दाल का उपभोग करे । इसी प्रकार बिना धार तोड़े जो पानी एक बार में मिल जाय उसके अतिरिक्त दूसरी बार फिर न लेवे । इस प्रकार एक मास तक अनुष्ठान करना पहली पडिमा है । (२) दूसरी पडिमा में, दो मास तक दो दत्ति आहार की तथा दो दत्ति पानी की ग्रहण करे, अधिक नहीं । (३) तृतीय पडिमा में, तीन मास तक तीन दत्ति आहार और तीन दत्ति पानी ग्रहण करे । (४) चतुर्थ पडिमा में चार मास तक चार दत्ति आहार और चार दत्ति पानी पर निर्वाह करे । (५) पंचमी पड़िमा में पांच मास तक पांच दत्ति आहार और पांच दत्ति पानी की ग्रहण करे । * (६) षष्ट पडिमा में छह मास तक छह दत्ति आहार और छह वृत्ति पानी की ग्रहण करे । (७) सातवीं पडिमा में सात मास तक सात दत्ति आहार की और सात दत्ति पानी की ग्रहण करे । इससे कम आहार- पानी ग्रहण करने में हानि नहीं है, किन्तु विशेष तपस्या है, अधिक नहीं लेना चाहिए ! (८) आठवीं पडिमा में सात दिन तक चौविहार एकान्तर उपवास करना
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy