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________________ ३०२. ] ब्रह्मचर्य-निरूपण मन का निरोध करने वाला और मनोविकार उत्पन्न करने वाले निमित्त कारणों से सदा बचने वाला पुरुष अपने ब्रह्मचर्य रूपी अनुपम रत्न की रक्षा करने में सफलता प्राप्त करता है। मूलः-हत्थपायपडिच्छिन्नं, कन्ननासावेगप्पिनं । अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवजए ॥ ६ ॥ छायाः-हस्तपाद प्रति चिन्ना, कर्णनासा विकल्पिताम् । अपि वर्षशतिका नारी, ब्रह्मचारी विवर्जयेत् ॥ ६॥ शब्दार्थः-जिसके हाथ-पैर कटे हुए हों, कान-नाक विकृत आकार वाले हों, और . वह सौ वर्ष की उम्र वाली बुढ़िया हो तो भी ब्रह्मचारी पुरुष उस से दूर ही रहे। भाष्यः-यहां भी ब्रह्मचर्य-रक्षा का उपाय बताया गया है । जैसे बहुत दिनों का भूखा मनुष्य भक्ष्याभक्ष्य का विचार भूल जाता है और भूख से विह्न होकर उच्छिष्ट भोजन भी खा लेता है, उसी प्रकार मन कामान्ध होकर योग्यायोग्य का विचार नहीं करता। इसलिए सूत्रकार कहते हैं कि जिस स्त्री के हाथ-पैर छेद डाले गये हो, जिसके कान और नाक भी कट गई हो या विकृत आकार वाली हो, अर्थात् जो स्त्री के रूप में लोथ हो, उस पर भी विषय-वालना का भूखा मन अनुरक्त हो जाता है। अतएव ब्रह्मचारी पुरुष ऐसी सौ वर्ष की वृद्धा से भी दूर ही रहे । उसके साथ संसर्ग न रक्खे। उससे परिचय न करे। - यहां पर भी स्त्री शब्द से पशु-स्त्री आदि का ग्रहण करना चाहिए। स्त्रियों के लिए इन्हीं विशेषणों से विशिष्ट सौ वर्ष. का बूढ़ा पुरुष त्याज्य है, ऐसा समझना चाहिए। मूल:-अंगपञ्चंगसंठाणं, चारुल्लवियपोहअं। इत्थीणं तं न निज्झाए, कामरागविवड्ढणं ॥७॥ छाया:-अङ्गप्रत्यङ्गसंस्थानं, चारूल्लपितप्रेक्षितम् । . . स्त्रीणां तन्न निध्यायेत्, कामरागविवर्धनम् ॥ ७ ॥ शब्दार्थः-ब्रह्मचारी पुरुष, काम-वासना जागृत करने वाले स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग की बनावट को तथा मनोहर बोली और कटाक्ष की ओर न देखे। भाज्या स्त्रियों के अंगों की वनावट को, उनके सौन्दर्य को तथा स्त्रियों की मनोहर वोली एवं नेत्रोंके कटाक्ष श्रादि को देखने-सुनने से ब्रह्मचारी परुष की नवी हई काम-वासना उसी प्रकार जाग उठती है जिस प्रकार राख से दबी हुई अग्नि वायु . के लगने से प्रदीप्त हो जाती है। अतएव ब्रह्मचारी इन सब की और दृष्टिपात भी न करे । ब्रह्मचारिणी सती; पुरुषों के अंगोपांग तथा मधुर स्वर आदि के ओर ध्यान । 'न देवे। .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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