SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सातवां अध्याय [ २७५ ] .. (६). दन्त वाणिज्य-हाथी के दांत का व्यापार करना, तथा उपलक्षण से हिरन और व्यान के चर्म का व्यापार करना, उल्लू के नाखून का व्यापार करना, शंख, सीप श्रादि का व्यापार करना। व्याध आदि को पेशगी मूल्य देकर इन वस्तुओं को खरीदने ले दोष लगता है, क्योंकि पेशगी लेने से व्याध आदि उसके निमित्त हाथी आदि त्रस जीवों का बध करते हैं। . (७) लाक्षावाणिज्य-लाख, मैनसिल, हड़ताल, श्रादि सावध वस्तुओं का व्यापार करना। (E) रस वाणिज्य-मदिरा, मधु, मक्खन श्रादि वस्तुओं का व्यापार करना। दूध, दही का विक्रय भी इसमें सम्मिलित है। (६) केशवाणिज्य-मनुप्य आदि द्विपद और गाय आदि चतुष्पद जीवों को बेचने का व्यापार करना। (१०) विषवाणिज्य-प्राणघातक विष का व्यापार करना, तथा तलवार, बंदूक नादि का व्यवसाय करना । (११) यन्त्रपीडन कर्म-तिल आदि पील कर तैल निकालने का धंधा करना, चक्की चलाकर आजीविका करना आदि। (१२) निर्लान्छन कर्म-बैल, घोड़ा श्रादि पशुओं को नपुंसक बनाने का धंधा करना। .. (१३) दवदानकर्म-बगीचा, नेत तथा जंगल में, धान्य की विशेष उत्पत्ति के निमित्त आग लगाना । (१४) सरद्रह तडाग शोषण कर्म-तालाक, बावड़ी, नदी आदि को सूखाने का कर्म करना। (१५) असतीजनपोषराकर्म-आजीविका के उद्देश्य से दुराचारिणी स्त्रियों का पोषण करना, उनसे दुराचार सेवन करवाकर द्रव्य उपार्जन करना । शिकारी कुत्ता शादि को पालकर बेचना आदि कार्य भी इसी के अन्तर्गत हैं। उक्त पापपूर्ण और निन्दनीय व्यापार त्रस तथा स्थावर जीवों की घोर हिंसा के कारण हैं । अतः श्रावक को तीन करण तीन योग से इनका परित्याग करना चाहिए। . मूल:-दसणवयसामाइय पोसहपडिमा य बंभ अचित्ते । ... .. प्रारंभ पेसउहि वजए. समणभूए य.॥४॥ छाया:-दर्शन व्रत सामायिक पोपधप्रतिमा च ब्रह्म अचित्तं । प्रारंभ प्रेषणोद्दिष्टवर्जका भ्रमणभूतश्च ॥ ४॥.. शब्दार्थः- (१) दर्शन पडिमा (२) व्रत पडिमा (३) सामायिक पडिमा (४) पोषध पडिमा (५) प्रतिज्ञा पडिमा (६) ब्रह्मचर्य पडिमा (७) अचित्त पडिमा (1) आरंभत्याय
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy