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________________ [ २७० ] धर्म-निरूपण (४) स्मृति-अकरणता-सामायिक के समय का परिमाण भूल जाने पर भी सामायिक पार लेना। . (५) अनवस्थितकरणता-व्यवस्थित रूप से सामायिक न करना । जैसेलामायिक का समय पूर्ण होने से पहले सामायिक पार लेना । सामायिक करने का समय होने पर भी सामायिक न करना, सामायिकस्थ हो कर भी निरर्थक बातों में समय व्यतीत करना आदि । इन पांच अतिचारों से बचकर, श्रद्धा, भक्ति, रुचि और प्रतीति के साथ, प्रतिदिन, नियत समय पर श्रावक को सामायिक का अनुष्ठान करना चाहिए। सामायिक के विधिपूर्वक अनुष्ठान करने से चित्त में समाधि जागृत होती है और आत्मा के सहज स्वरूप का आविर्भाव और प्रकाश होता है। .. (२) देशावकाशिकव्रत-पहले दिग्व्रत का निरूपण किया गया है । दिगवत में दिशाओं का जो परिमाण किया जाता है वह जीवनपर्यन्त के लिए होता है। जीवन में न जाने कव, किस दिशा में, कितनी दूर जाने की आवश्यक्ता पड़ जाय ? इस विचार से थावक प्रायः विस्तृत मयांदा रखता है। उस मर्यादा के अनुसार प्रति दिन जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतएव थोड़े समय के लिए उस सीमा में संकोच किया जा सकता है । विवेकशील श्रावक, एक घड़ी, एक प्रहर. एक दिन, एक पक्ष, मास श्रादि नियत समय के लिए मर्यादा में जो न्यूनता करता है और अमुक नगर, गांव, पहाड़, नदी श्रादि तक उसे सीमित कर लेता है उसे देशावकोशिक व्रत कहा है । इस व्रत में कुछ आगार होते हैं । जैले- .. . [क] राजा की आज्ञा से मर्यादा बाहर जाना पड़े तो श्रागार । '..खि ] देव या विद्याधर आदि हरण करके बाहर ले जाय तो श्रागार । [ग] उन्माद श्रादि रोग के कारण विवश होकर चला जाय तो श्रागार । | घ] मुनि दर्शन के निमित्तं जाना पड़े तो भागार। . .. |ङ] जीव रक्षा के लिए जाना हों तो श्रागार। . . . . . - [च] अन्य किसी महान् उपकार के लिए जाना पड़े तो भागार । आगार उस छूट को कहते हैं, जो दूरदर्शिता के कारण व्रत ग्रहण करते समय रखली जाती है। देशावकाशिक व्रत धारण करने से मर्यादा के बाहर के पापों का निरोध हो जाता है और आत्मा में सन्तोष, शान्ति तथा हलकापन आ जाता है। . - दूसरे शिक्षा व्रत के पांच अतिचार यह हैं . (१) भानयन प्रयोग-मर्यादा की हुई भूमि से बाहर की वस्तु अन्य व्यक्ति द्वारा मंगवाना। (२) प्रेष्य प्रयोग-मर्यादा से बाहर दूसरे के साथ कोई वस्तु भेजना। .. (३) शब्दानुयात--शब्द का प्रयोग करके मर्यादा से बाहर स्थित किसी पुरुष .. को बुलाना।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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