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________________ सातवां अध्याय [ २६५ ] ... (२) उपभोग परिभोग परिमाणवत-एक बार भोगने योग्य भोजन श्रादि उप. भोग कहलाता है और बारम्बार उपभोग किये जाने योग्य पदार्थ परिभोग कहलाते हैं इन की मर्यादा कर लेना उपभोग परिभोग व्रत है। यह व्रत भोजन की अपेक्षा और कर्म ( कार्य ) की अपेक्षा से दो प्रकार का है। भोजन की अपेक्षा छब्बीस वस्तुओं की मर्यादा करनी चाहिए और कर्म की अपेक्षा पन्द्रह कर्मादान का त्याग करना चाहिए । पन्द्रह कर्मादानों का उल्लेख आगे किया जायगा। भोजन की अपेक्षा छब्बीस बोल इस भांति हैं: (१) शरीर को साफ करने के लिए अंगोछा, रूमाल, ट्वाल आदि की मर्यादा करना (२) दांत स्वच्छ करने के लिए दातौन, मंजन आदि की मर्यादा करना (३) श्राम, नारियल, अंगूर आदि फलों के उपभोग की मर्यादा करना (४) इन, तेल, फूलेल आदि की मर्यादा करना। (५) शरीर को स्वच्छ बनाने के लिए पीठी, उबटन आदि की मर्यादा करना। (६) स्नान तथा स्नान के लिए जल की मर्यादा करना। (७) ऊनी, सूती तथा रेशमी वस्त्रों के अोढ़ने, पहनने की मर्यादा करना। (८) केशर, चंपन, कुंकुम आदि विलेपन योग्य वस्तुओं की मर्यादा करना । (६) चस्पा, चमेली, गुलाब आदि फूलों की मर्यादा करना। . (१०) हार, कंठा, श्रादि-श्रादि आभूषणों की मर्यादा करना । (११) धूप, अगरबत्ती, आदि सुगंधी वस्तुओं की मर्यादा करना । (१२) दूध, शर्बत, आदि पीने योग्य पदार्थों की मर्यादा करना। (१३) फीके, मीठे आदि भक्षण करने योग्य पदार्थों की मर्यादा करना। (१४) चावल, खिचड़ी, थूली, दलिया आदि रंधैन पदार्थों की मर्यादा करना। (१५) चना, मूंग, मोठ, उड़द आदि दालों का तथा धान्यों की मर्यादा करना। (१६) दुध, दही, घृत, तैल, गुड़, शक्कर आदि विगय (विकृति ) की मर्यादा करना। (१७) शाक, भाजी की मर्यादा करना। (१८) बादाम, पिश्ता, चिरौंजी, खारक, द्राक्षा मेवा की भर्यादा करना। . . . (१६) भोजन में काम आने वाली वस्तुओं की सामान्य मर्यादा करना। (२०) तालाव, प, बावड़ी, नदी आदि के पानी की मर्यादा करना। (२१) सुपारी,इलायची,लौंग,पान आदि मुखशोधक पदार्थों की मर्यादा करना। (२२) हाथी, घोड़ा, ऊंट, तथा मोटर, बग्घी, पालकी, स्याना, रथ, तांगा आदि लचारियों की मर्यादा करना। (२३) जूता, खड़ाऊं, मोजे आदि पैर में पहनने के पदार्थों की मर्यादा करना। (२४) खाट, पलंग, पाटा, तख्त, टेबिल, कुर्सी, कोच; वेंच आदि सोने, चैठने, विश्राम लेने योग्य वस्तुओं की मर्यादा करनार... (२५) कच्चे दाने, कच्चा शाक, सचित्त जल, नमक, आदि की मर्यादा करना।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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