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________________ [ २६४ 1 धर्म-निरूपण (८) सोने-चांदी के अतिरिक्त अन्य धातुओं का, जैसे-तांबा, पीतल, लोहा, सीसा, जर्मन-सिल्वर, नकली सोना आदि का परिमाण नियत कर लेना चाहिए। ': उल्लिखित वस्तुओं के परिमाण में समस्त पदार्थों का परिमाण आ जाता है। जिन वस्तुओं का नामोल्लेख नहीं हुआ है उन्हें यथायोग्य इन्हीं में सम्मिलित समझना चाहिए । आशय यह है कि श्रावक को प्रत्येक पदार्थ की मर्यादा वांध कर अधिक पाप से बचने का और संक्लेशजन्य वेदना से मुक्त होने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए। इस व्रत के भी पांच अतिचार हैं । वे इस प्रकार हैं (१) क्षेत्रवास्तुपरिमाणातिक्रम-खेत आदि और मकान आदि की वांधी हुई मर्यादा का उल्लंघन करना । किसी ने पाँच घरं रखने की मर्यादा की हो और वह छटा घर रख ले तो व्रत सर्वथा खंडित हो जाता है । संख्या बरावर बनाये रखने के लिए यदि दो घरों को मिलाकर एक चड़ा घर वना ले तो अतिचार लगता है। इसी प्रकार खेत आदि के विषय में समझना चाहिए । (२) हिरण्यसुवर्णपरिमाणातिक्रम-चांदी-सोने की मर्यादा का उल्लंघन करना अगर किसी ने सोने के पाँच आभूषण मर्यादा में रक्खे हैं और छठा आ जाय तो दो का एक आभूषण करवा लेना अतिचार है । अथवा आभूषण स्वयं उपार्जन करके अपने पुत्रादि स्वजन को दे देना भी अतिचार है। . (३) धन-धान्य परिमाणातिक्रम-रुपया, पैसा और धान्य के परिमाण का उल्लंघन करना । पहले की ही तरह एक देश भंग होने पर अतिचार होता है । सर्वया भंग होने पर अनाचार हो जाता है। . द्विपद चतुष्पद परिमाणातिक्रम-दो पैर वाले और चार पैर वाले पशुपक्षी आदि तथा रथ आदि की मर्यादा- को एक देश भंग करना । (५) कुप्पधातु परिमारणातिक्रम-तांबा, पीतल आदि तथा अन्य फुटकल सामान की वांधी हुई मर्यादा का उल्लंघन करना । यह भी पूर्वोक्त रीति से ही अतिचार है। . . . तीन गुण व्रत पूर्वोक्त पांच अणुव्रतों के पालन में जो गुणकारी होते हैं अथवा जो श्रात्मा का उपकार करने वाले गुणों को पुष्ट करते हैं, उन्हें, गुणवत कहते हैं । गुण तीन हैं(१) दिशा परिमाणव्रत (२) उपभोग परिभोगवत और (३) अनर्थ दण्ड विरमण व्रत । . (१) दिशापरिमाण व्रत-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, दिशाओं का, वायव्य, वैऋत्य आदि चार विदिशाओं का, ऊपर और नीचे, इस प्रकार दशों दिशाओं का परिमाण करना और नियत सीमा से आगे श्रास्त्रव के सेवन का प्रत्याख्यान करना दिशा परिमाण व्रत है। . . . . . . . . . . . . . . .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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