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________________ सातवां अध्याय २५६ ] किया जाने वाला मिथ्या भाषण न्यासापहार अलीक है। किसी की रक्खी हुई धरोहर के विषय में कह देना कि यह धरोहर हमारे यहां रक्खी ही नहीं है, अथवा बिना धरोहर धरे ही किसी से मांग लेना; इत्यादि अन्त भाषण का इसमें समावेश होता है। . (५) कूटसाक्षी-अपने लाभ के उद्देश्य से, अपने प्रिय जन के लाभ के उद्देश्य से अथवा किसी को हानि पहुंचाने के लक्ष्य से, न्यायाधीश या पंचायत के समक्ष असत्य साक्षी देना अर्थात् सत्य घटना को असत्य और असत्य को सत्य रूप में चित्रित करना कूटसाक्षी कहलाता है । श्रावक के लिए यह सब अलीक अग्राहा हैं। स्थूलमृषावाद विरमणव्रत के भी पांच अतिचार हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) सहसाभ्याख्यान (२) रहोऽभ्याख्यान (३) स्वदारमन्त्रभेद (४) मिथ्या-उपदेश और (५) कूटलेखकरण । . (१) सहसास्याख्यान-बिना सोचे-विचारे सहसा किसी को कलंक लगा देना सहसास्याझ्यान है। जैसे-तू चोर है, तू दुराचारी है, आदि। (२) रहस्यास्याख्यान-एकान्त में बैठ कर किसी बात का विचार करते हुए पुरुषों को देख कर कहना कि 'ये लोग राजा के विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे होंगे' इस प्रकार की असत् और आपत्तिजनक संभावना लोक में प्रसिद्ध कर देना रहस्याभ्याख्यान अथवा रहोऽस्याख्यान नामंक अतिचार है। (३) स्वदारमन्त्रभेद-विश्वासपात्र समझकर अपनी पत्नी द्वारा कही हुई किली गुप्त बात को प्रकाशित कर देना स्वदारमन्त्रभेद अतिचार है । गुप्त बात सच' होने पर भी, उसके प्रकाशन से लज्जाजन्य मृत्यु आदि अनेक अनर्थ हो सकते हैं। इस प्रकार हिंसाजनक वक्षन होने के कारण भेद का प्रकट करना सत्याणुव्रत का अतिचार है। यह अतिचार पुरुष को प्रधान मान कर बताया गया है । स्त्रियों के लिए 'स्वपतिमन्त्रभेद' लमझना चाहिए अर्थात् अपने पति की गुप्त बात प्रकाशित करना स्त्रियों के लिए अतिचार है। (४) मिथ्या-उपदेश-अनजान में अथवा असावधानी में मिध्या-उपदेश दिये जाने से यह अतिचार लगता है । जान-बूझकर समझ-सोचकर मिथ्या-उपदेश देने से व्रत का सर्वथा भंग हो जाता है । अथवा दूसरे को असत्यभाषण का उपदेश देना मिथ्या-उपदेश कहलाता है । जैसे-'अमुक अवसर पर मैंने अमुक मिथ्या वात कह कर अमुक काम बना लिया था। इस प्रकार कहने वाला व्यक्ति यद्यपि सत्य कहता है, फिर भी प्रकारान्तर से वह श्रोता को असत्यभाषण करने को उद्यत बनाता है, श्रतएव इस प्रकार का सत्यभापण भी मिध्या-उपदेश से समाविष्ट है और अणुव्रतधारी श्रावक को इसका त्याग करना चाहिए । (५) कूटलेखकरण-मिथ्या लेख लिख लेना, किसी की भूठी मोहर बना कर लगा लेना, जाली अँगूठा चिपका देना, इत्यादि कूटलेखकरण कहलाता है । भूठे दस्तावेजों का लिखना, झूठे समाचार प्रकाशित करना, निबंध लिखना, हुंडी आदि
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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