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________________ [ २५८ ] धर्म-निरूपण (२) स्थूलमृषावाद विरमणव्रत-साधु मृषावाद का पूर्णरूपेण परित्याग करते हैं, किन्तु श्रावक के लिए ऐसा करना कठिन है । लोकव्यवहार में ऐसा अवसर अनेक बार उपस्थित हो जाता है जब उसे लत्य से किंचित अंशों में च्युत हो जाना पड़ता है अतएव जिनेन्द्र भगवान् ने श्रावक को स्थूल मृषावाद अर्थात् मोटे असत्य का परित्याग करना ही अनिवार्य बतलाया है । स्थूल असत्य के पांच भेद हैं । वे इस प्रकार हैं (१) कन्यालीक-कन्या के विषय में असत्य भाषण करना कन्यालीक है। यहां यह शंका की जा सकती है कि केवल कन्या के विषय में ही असत्य बोलना स्थूल असत्य क्यों हैं ? अन्य पुरुष, स्त्री या बालक के विषय में असत्य बोलना क्यों स्थल असत्य नहीं है ? इसका समाधान यह है कि 'कन्या' शब्द यहां उपलक्षण है । अतएव कन्या शब्द से यहां मनुष्य जाति मान का अथवा द्विपद मात्र का ग्रहण होता है। तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य जाति या किसी भी द्विपद प्राणी के विषय में मिथ्या भाषण करना कन्यालीक कहलाता है और श्रावक को इसका परित्याग करना चाहिए । यहां 'कल्या' शब्द को ग्रहण करने का प्रयोजन कन्या की प्रधानता प्रकट करना है। कन्या मनुष्य जाति या द्विपद प्राणियों में प्रधान है । उसके विषय में अलत्य भाषण करने से बड़े-बड़े अनर्थ होते देखे जाते हैं। कन्या सुन्दरी, गुणवती, वुद्धिशालिनी हो और स्वार्थवश उसे कुंरूपा, काली कलूटी, अंधी, लली, लंगड़ी मूर्ख आदि कह देना, श्रावक को उचित नहीं है। इसी प्रकार अन्य मनुष्यों और द्विपदों के विषय में भी असत्य न कहना चाहिए। . . (२) गवालीक-गो के विषय में मिथ्या भाषण करना गवालीक शब्द का अर्थ होता है । किन्तु जैसे कन्यालीक शब्द में कन्या उपलक्षण है उसी प्रकार गवालीक शब्द में गो उपलक्षण है । कन्या शब्द से जैसे मनुष्य मात्र का अंथवा द्विपद मात्र का ग्रहण किया गया है, उसी प्रकार यहां गो शब्द से पशु जाति मात्र का अथवा चतुष्पदों (चौपायों) का ग्रहण किया जाता है। अंतएवं किसी भी पशु अथवा किसी भी चौपाये के विषय में असत्य भाषण करना गबालीक है । जैसे-किसी के तेज चलने वाले वैल को गरियाल कहना, शुभ लक्षणों से सम्पन्न अश्व को अशुभ लक्षण सम्पन्न कहना, दुधारी भैंस को विपरीत बतलाना आदि । इस प्रकार का स्थूल असत्य आपण श्रावकों के लिए सर्वथा परित्याज्य है। ... (३) भौमालीक-भूमि संबंधी मिथ्या भाषणं को भौभालीक कहते हैं। यहां पर भी भूमि शब्द उपलक्षण है। अतः भूमि शब्द से समस्त अपद वस्तुओं का ग्रहण किया जाता है अथवा भूमि से उत्पन्न होने वाले समस्त पदार्थों का भूमि शंन्द से संग्रह किया जाता है। जैसे वृक्ष के विषय में असत्य भाषण करना, रत्न आदि वस्तुओं के संबंध में अन्त भापण करना, इत्यादि । श्रावक को इस असंत्य का भी त्याग करना चाहिए। ... (४) न्यास्तपहार अलीक-न्यास अर्थात् धरोहर का अपहरण करने के लिए
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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