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________________ - [ १८० ] आत्म-शुद्धि के उपाय ... . . भाष्यः-जो जीव अपने जीवन में धर्म की आराधना न करते हुए वृद्ध-अवस्था में जा पहुँचे हैं, उनकी श्रात्म-शुद्धि संभव है या नहीं ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए यह गाथा कही गई है। ........................... आत्मा नित्य है, अजर है, अमर है। वह न कभी बालक होता है, न युवा होता है, न वृद्ध होता है । बालक श्रादि अवस्थाएँ शरीर की विभिन्न पर्याय हैं । ऐसी हालत में यह प्रश्न ही कैसे उठ सकता है कि वृद्धावस्था में धर्म-लाधना संभव है या नहीं ? और जब यह प्रश्न ही संगत नहीं है तब-सूत्रकार ने उसके समाधान का प्रयत्न क्यों किया है ? इसके उत्तर में यह समझना चाहिए कि वास्तव में प्रात्मा कभी बूढ़ा या . वालक नहीं होता। फिर भी कर्मों के कारण उसकी स्वाभाविक शक्तियां अव्यक्त हो रही हैं । अतएव वह जो भी चेष्टा करता है, उसमें शरीर की सहायता की श्रावश्यकता पड़ती है। जानना और देखना आत्मा का स्वाभाविक गुण है. किन्तु वह भी बिना इन्द्रियों की सहायता के व्यक्त नहीं होने पाता । इसी प्रकार अन्यान्य व्यापार भी शरीराश्रित हो रहे हैं। इसी कारण मुक्ति की प्राप्ति में वज्र-ऋषभनाराच संहनन को भी निमित्त कारण के रूप में स्वीकार किया गया है । तात्पर्य यह है कि शरीर यदि सुदढ़ होगा तो मोक्ष-प्राप्ति के अनुकूल प्रबल.पुरुषार्थ हो सकेगा। शरीर.यदि शिथिल, रुग्ण और निर्बल होगा तो उससे वैला पुरुषार्थ नहीं हो सकता, जिसके होने पर भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है। ऐसी अवस्था में यह प्रश्न उठना अलंगत नहीं वरन् सुसंगत ही है। .. - प्रस्तुत प्रश्न के उत्तर में सूत्रकार ने बतलाया है कि जिन्हें तप, संयम, शान्ति और ब्रह्मचर्य प्यारा है, वे वृद्धावस्था में भी यदि सन्मार्ग की ओर उन्मुख होते हैं तो उन्हें देवलोक की प्राप्ति होती है । अतएव वृद्धावस्था में प्राप्त पुरुषों को निराशं न होकर तप आदि के आराधन में दत्तचित्त होना चाहिए। ___. गाथा में 'पियो' शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है । जो शक्तिशाली-पुरुष तप, संयम आदि का अनुष्ठान करते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है और जो वृद्धावस्था आदि के कारण संयम 'प्रादि के अनुष्ठान में समर्थ नहीं होते, किन्तु जिन्हें लयम, तप, आदि प्यारो लगता है, जिनकी रुचि, अभिलाषा अथवा प्रीति संयम आदि के अनुप्टान में होती है, वे अपनी पवित्र रुचि-प्रीति के कारण अमर-लोक (स्वर्ग) प्राप्त अवश्य करते हैं। ... ___इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वृद्धावस्था में पहुंच जाने पर भी जिन मुमुक्षुत्रों को संयम, तप, दहमा और ब्रह्मचर्य केवल प्रिय ही नहीं है वरन जो उनका पालन.भी करते हैं, वे मोल भी प्राप्त करते हैं । तात्पर्य यह हुआ कि तप, संयम आदि की और जिनकी हार्दिक रूचि है , देवलोक में जाते हैं, जो उनका अनु. छान करते हैं वे अन्य जीवों की भांति ही मुशि प्राप्त कर लेते हैं। ... __'अमरभवणाई का अर्थ है--अमरो अर्थात् देवों के भवन । यहां अमर शब्द ले देव का अर्थ लिया गया है, जो कोश-प्रसिद्ध । अमरकोश में कहा है-'अमरा निर्जरा देवाः' इत्यादि । यहां पर यह शंका हो वक्रती है कि देव भी मनुष्य, तिर्यञ्च श्रादि
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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