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________________ - - [ १७८] श्रात्म-शुद्धि के उपाय भाष्यः-आत्मशुद्धि का वर्णन करते हुए पूर्व गाथा में यह बताया गया है. कि कर्म से मुक्त श्रात्मा ऊर्ध्व गति करके लोकान में प्रतिष्ठित हो जाता है, किन्तु पाप कर्म से मुक्ति तभी हो सकती हैं जब नवीन कर्मों का बंध होना रुक जाता है । जिस तालाव में सदा नवीन जल पाता रहता है उस तालाव के जल का पूर्ण क्षय नहीं हो सकता । इसी प्रकार जो श्रात्मा नवीन कर्मों का आदान करता रहता है वह पूर्ण रूप से निष्कर्म कदापि नहीं हो सकता। अतएव नये कर्मों के बंध का निरोध होना निष्कर्म अवस्था प्राप्त होने के लिए अनिवार्य है। . यही सोचकर श्रीगौतम स्वामी सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, परम वीतराग, श्रमणोत्तम श्रीमहावीर से विनय पूर्वक प्रश्न करते हैं कि-भगवान् ! किस प्रकार चलने, ठहरने, बैठने, सोने, भोजन करने से और किस प्रकार भाषण करने से पाप-कर्मों के बंध से बचा जा सकता है ? प्रत्येक क्रियापद के साथ 'कथे' ( कैसे-किस प्रकार ) का प्रयोग यह सूचित करता है कि इन सब क्रियाओं को करते समय, विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है। . यहाँ जिन क्रियाओं का शाब्दिक उल्लेख किया गया है, वे उपलक्षण मात्र हैं। उनसे अन्य क्रियाओं का भी जिनका उल्लेख गाथा में नहीं किया गया है-ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार उत्तरवर्ती गाथा में भी उपलक्षण से ही उत्तर दिया गया है। वहाँ अन्यान्य क्रियाओं का ग्रहण करना चाहिए। गाथा में 'बंध' क्रिया के कर्ता का उल्लेख नहीं किया गया है, किन्तु सामर्थ्य से 'जीव' अथवा 'मुनि' कर्ता का अध्याहार करना चाहिए । तात्पर्य यह है कि किस प्रकार की प्रवृत्ति करने से जीव अथवा मुनि पाप कर्म का बंध नहीं करता है ? श्रीभगवान् उवाचमूलः-जयं चरे जयं चिट्टे, जयं अासे जयं सए । जयं भुंजतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधइ ॥ २१ ॥ छायाः-यतं चरेत् यतं तिष्ठेत्, यत्तमासीत् यतं शयीत् । ___यतं भुजानो भापभाणः, पापं कर्म न बन्नाति ॥ २१ ॥ शब्दार्थः-श्रीभगवान् उत्तर देते हैं-यतना पूर्वक चलना चाहिए । यतना पूर्वक ठहरना चाहिए। यतना पूर्वक बैठना चाहिए । यतना पूर्वक सोना चाहिए । यतना पूर्वक भोजन करने वाला और यतना पूर्वक भापण करने वाला पाप कर्म नहीं बाँधता है। भाष्यः-श्रीगौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् कहते हैं-हे गौतम ! आत्म-शुद्धि के अभिलापी और कर्म बंध से बचने की आकांक्षा रखने वाले मुनि या अन्य मुमुनु को चाहिए कि वह यतना के साथ चले, बैठे, ठहरे, सोवे, भोजन करे और भाषण करे । इन सब क्रियाओं को संतना के साथ करने वाला पाप कर्म का बंधन नहीं करता हैं ।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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