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________________ मृतीय अध्याय ":: (१) अमुक अरिहन्त के नाम-स्मरण से उपद्रव होता है, दुर्भिक्ष होता है, या शत्रुका नाश होता है, इस प्रकार कहना अरिहंत की आशातना है। .. .... (२ जैन धर्म में स्नान आदि शौच का विधान नहीं है, अतएव यह धर्म मलीन है, इस प्रकार कहना अईन्त भगवान् द्वारा प्ररूपित धर्म की आशातना है। (३) पांच प्राचार के पालक श्राचार्य की श्राशातनी करना । जैसे-यह प्राचार्य तो बच्चे हैं-थोड़ी उम्रके हैं, शास्त्रज्ञ भी नहीं हैं। (४) दादशांग के ज्ञाता, स्व-पर सिद्धान्त के पारणामी उपाध्याय का वर्णवाद चोलना उपाध्याय की आशातना है । जैसे-इन उपाध्याय को क्या पाता है ? इन से ज्यादा ज्ञानी तो में हूं ? इत्यादि कहना।। (५) साठ वर्ष की उम्र वाले वयःस्थविर, वीस वर्ष की दीक्षा वाले दक्षिास्थविर और स्थानांगसूत्र तथा समवायांग सूत्र के गुह्य अर्थ के ज्ञाता श्रुतस्थविर की निन्दा करना स्थविर श्राशातना है। . __(६) एक गुरु के समीप अध्ययन करने वाले शिष्य-समूह को कुल कहते हैं। उस कुल की निन्दा करना कुलं की आशातना है। (७) साधुओं का समुदाय गण कहलाता है । उस गण की बुराई करना गण.. की ओशांतना है। . . (८) साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप संघ की आशातना करना संघ.की. पाशातना करना कहलाता है। (६) शास्त्रोक्त शुद्ध क्रिया की अवहेलना करना क्रिया की आशातना है। ... (१०) एक साथ आहार श्रादि करने वाले सांभोगिक मुनि की निन्दा आदि करना सांभोगिक की भाशातना है । (११-१५) मतिज्ञान आदि परचो हानों की बुराई करना ज्ञान की पांच श्राशातनाएँ हैं। . . . इन पन्द्रह की श्राशातना का त्याग करना, इन्हीं की भक्ति और बहु-मान करना तथा इन्हीं के गुणों का कीर्तन करना १५४३-४५.भेद अनाशातना विनय के समझने चाहिए। . . . सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्यराय और यथाख्यातं, इस पांच प्रकार के चारित्र का विनय करना और इनका भाचरण करने वालों के प्रति प्यादरभाव होना पांच प्रकार का चारिष विनय है। .. .. मन, वचन और काय का व्यापार क्रमशः मनविनय, पचनविनय और कारविनय कहलाता है । मनविनय के दो सूल भेद है-प्रशस्त मनविनय और अप्रशस्त मनविनय । प्रशस्त मनविनय सात प्रकार का है-(१) पाप रहिस (२) क्रोध आदि रहित (३) किया में श्रासाप्ति रहित (७) शोक श्रादि उपफ्लेशों आदि से रहित (५)
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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