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________________ दिया। यही नहीं, वरन् अहिंसा का व्यापक रूप से एवं स्थायी रूप से पालन कराने के लिए आपने राजपूताना के अनेकानेक राजाओं को, और ठाकुरों को भी इस भावना के लिए उद्यत किया । यह पहले ही कहा जा चुका है आपका उपदेश हृदय को प्रभावित करने वाला होता है । अतएव आप के सदुपदेश से बहुत से राजाओं एवं जागीरदारों ने अपने-अपने राज्यों में हिसाबंदी की स्थायी आज्ञाएँ जारी की हैं और आप को इस आशय की सनदें लिखदी हैं। उदयपुर के महाराणा साहब ने अनेक बार आपको सदु. पदेश देने के लिए आमंत्रित किया है । सं० १६६५ में श्री महाराणा साहब ने खास तौर से अपने कर्मचारी भेज कर उदयपुर में चातुर्मास करने की प्रार्थना की थी। आपने महाराणा सा० की प्रार्थना स्वीकार कर उदयपुर में चातुर्मास किया कई बार श्री महाराणाजी साहेब ने धर्मोपदेश श्रवण किया, जिसके फल-स्वरूप अनेक उपकार हुए । वर्तमान महाराणा सा० के पिताजी भी आप के भक्त थे और आप के उपदेश से उन्होंने भी जीव दया के लिए अनेक कार्य किये थे। मेवाड़, मालवा एवं मारवाड़ के अनेकों जागीरदारों को आपने जीवदया का अमृत पिलाया है और अमुक २ अवसरों पर उन्होंने जीव हिंसा की पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से बंदी की है । यहां विस्तार भय से इन सब बातों का और उन सनदों का उल्लेख नहीं किया जा सकता। जिज्ञासु पाठकों को 'आदर्श मुनि' आदर्श-उपकार पढ़ना चाहिए। 'आदर्श मुनि' लिखे जाने के पश्चात भी बहुत-सी ऐसी सनदें प्राप्त हुई हैं । तात्पर्य यह है कि मुनि श्री ने न केवल मानव-जाति पर, अपितु पशु पक्षी गण पर भी असीम उपकार किये हैं। आपने अपना सम्पूर्ण जीवन ही धर्मोपदेश एवं जीवदया के प्रचार के निमित्त अर्पित कर दिया है । उच्च पदस्थ यूरोपियन टेलर साहब जैसे विदेशियों को भी उपदेश देकर आपने जीवदया की ओर आकर्षित किया है। महाराजश्री ने उच्च-नीच, छोटे-बड़े, जैन-अजैन आदि का किसी भी प्रकार का भेदभाव न रखते हुए सभी श्रेणियों की जनता में भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा एवं सत्य का प्रचार किया है । सभी पर आपने जैनधर्म की श्रेष्ठता का प्रभाव डाला है और सभी को अपने उपदेश से आभारी बनाया है। मानव जाति के नैतिक एवं धार्मिक धरातल को ऊँचा उठाने में आपने जो भाग लिया है वह सर्वथा प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। आपके प्रचार का क्षेत्र भी बहुत विस्तृत रहा है । जैन मुनियों की मर्यादा के अनुसार पैदल भ्रमण करते हुए भी आप ने भारत वर्ष के विभिन्न प्रान्तों में विहार किया है । मेवाड़, मालवा, मारवाड़ आदि राजपूताना के प्रान्त तो आपकी प्रधान विहार भूमि हैं ही, साथ में, आप ने दिल्ली, आगरा, कानपुर, बम्बई पूना अहमदाबाद लखनऊ प्रादि दूरवर्ती नगरों तक भ्रमण करके वहां की जनता को लाभ पहुंचाया है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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