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________________ ( ऋ ) जैन दिवाकरजी महाराज की विद्वत्ता का परिचायक है। • अन्य धर्म प्रचारकों की अपेक्षा आपकी प्रचार शैली भी कुछ विशेषता रखती है । धनी-निर्धन, राजा-रंक, उच्च जातीय-हीन जातीय, इत्यादि सभी प्रकार की जनता में आपने प्रचार किया है। राणा, महाराणा, राजा, महाराजा, सेठ, साहूकार एक ओर आप के परम पूत प्रवचन के पीयूष का पान करके अपने आप को धन्य मानते हैं, तो दूसरी ओर आप, समाज में घृणापान समझे जाने वाले, जातिमद के कारण ठुकराये हुए व्याक्तियों को भूल नहीं जाते। आप में जैन मुनि के योग्य साम्य भाव विद्यमान है। आप चमारों, खटीकों और वेश्याओं तक को अपना पवित्र संदेश सुनाते हैं और उन्हें ऊँचा उठाने का प्रयत्न करते हैं । ऐसे लोगों में नैतिक एवं धार्मिक भावनाएँ भरते हैं। . कितने ही हिंसकों ने आप के उपदेश से आजीवन हिंसा का त्याग किया है, कितने ही मांस भक्षकों ने मांस भक्षण छोड़ कर अपना कल्याण किया है, कितने ही शराबियों ने शराब त्यागी है और भांग, गांजा, तमाखू आदि का भी त्याग किया है। इस प्रकार मुनि श्री मानव-जाति की नैतिक एवं धार्मिक प्रगतिके लिए जो अन्य . समस्त प्रगतियों का मूल है-देवदूत का काम कर रहे हैं। प्राणीजगत् में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है, यह सत्य है, मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि मनुष्यों के सिवाय अन्य पशुओं अथवा पक्षियों में चतना ही नहीं है । अथवा मनुष्य को अन्य प्राणियों पर मनमाना अत्याचार करने का अधिकार है। जैसे मनुष्य को सुख दुःख का संवदन होता है, उसी प्रकार पशुओं को भी होता है। पशुओं में भी चेतना की अखंड धारा प्रवाहित हो रही है। मगर उन्हें व्यक्त भापा प्राप्त नहीं है । वे मानवीय भाषा में पुकार नहीं सकते और मनुष्य क कान उनकी पुकार सुन नहीं सकते। तब कीन उन्हें सहृदयता का दान देवे ? पशुओं का करुण क्रन्दन कान नहीं सुन सकते, मगर हृदय की करुणा, अन्तः करण की संवेदना उसे अवश्य सुन सकती है । किन्तु वह करुणा एवं संवेदना बिरलों को ही प्राप्त होती है । जिन्हें वह प्राप्त होती है वह महामानव की महिमा से मंडित हैं और सच्चे अर्थ में वहीं मनुष्यता के अधिकारी हैं। ___ मुनि श्री की करुणा का प्रवाह बहुत विस्तृत और हृदय की संवेदना अतीव उग्र है। इसी से मुक पशुओं का चीत्कार उन्हें सुनाई दिया । उन्हान सोचा मनुष्य, पशुओं का वध करता है अर्थात बड़ा भाई अपने छोटे भाई के प्राणों का गाहक बना हुआ है। ऐसा करके बड़ा भाई छापने बड़प्पन को कलंकित करता है और यहां तक कि छटपन के योग्य भी नहीं रहता । मानव-समाज को इस कलंक से, घोर पाप से, अक्षम्य अपराध से बचाने की ओर महाराज श्री का ध्यान गया। उन्होंने अहिंसा का प्रभावशाली उपदेश
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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