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________________ [ ७e ... .... षट् द्रव्य निरूपण नय कहलाने लगता है। यह दुर्नय ही जगत् से अनेक प्रकार के एकान्तवादों का जनक है। यथा-चाद्वैतवाद एकान्त संग्रह नयाभास से उत्पन हुना है, लेगम नयाभाल से वैशेषिक मत की उत्पत्ति हुई है-जो गुण और गुणी में सर्वथा भेद स्वीकार .. करता है । एकान्त व्यवहार नय से बारीक मत का निकाल हुश्रा है जो कि स्थूल लोक व्यवहार का अनुलरण करता है। ऋजुसूत्र नयाभास से बोद्धमत का उद्गम हुश्रा है-जो प्रत्येक पदार्थ को एक वर्तमान क्षण स्थायीही स्वीकार करता है । इसी प्रकार एकान्त शब्द, लयभिरूढ़ चौर एवंभूत-इन्न तीन शब्द नयाभालों से विभिन्न वैयाकरणों की भनक मिथ्या कल्पनाएँ उसून हुई हैं। बात यह है कि वस्तु अनन्त धर्मात्मा है। उन अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म को जानना होप नहीं है किन्तु एक धर्म को जान कर अन्य धर्मों का निषेध करना दोष है। ऐसा करने लेबपूर्ण वस्तु ही सस्पूर्ण प्रतीत होती है। इस विपय में सात अन्धों का दृष्टान्त प्रसिद्ध है। अतएव लमत्र वस्तु स्वरूप का यथार्थ और पूर्ण ज्ञान. प्राप्त करने के लिए अनेक नयों के अभिप्राय फो ध्यान म रखना चाहिए. । इसी को 'स्याद्वाद-लिद्धान्त' कहते हैं। स्थाद्धा-सिद्धान्त मस्पूण लत्य की प्रताति कराता है और साथ ही एकान्तवार से उत्पन्न होने वाले मत-मतान्तगे सम्बन्धी क्लेशों का उपशमन करता है । स्यादाद संसार को यह शिक्षा दता है कि तुम अपने दृष्टिकोण को सत्य समझो, पर जो दृष्टिकोण तुम्हें अपना विगधी प्रतीत होता है, उसकी सत्यता को भी समझने का प्रयत्न करो । उसे मिथ्या कह कर अगर उसे अस्वीकार मारोगे तो तुम स्वयं मिथ्यावादी बन जानोगे, क्योंकि विरोधी दृष्टिकोण में भी उतनी ही लचाई है जितनी तुम्हारे दृष्टिकोण में है और तुम उसे मिथ्या कहते हो तो तुम स्वयं अपने दृष्टिकोण को मिथ्या बनाते हो। · प्रश्न-परस्पर विरोधी दोनों दृष्टिकोण लत्य फैले हो लफते हैं ? ... उत्तर--प्रत्येक दो दृष्टिकोणों को 'परस्पर विरोधी' समझाना ही मिथ्या है। जो दृष्टिकोण सापेक्ष होते हैं वे विरोधी नहीं होते। सापेक्षता उनके विरोध रूपी विष को नए कर देती है। यह रुप मनुष्य है, पशु नहीं है' यहां एक ही रूप में अस्तित्व और नास्तित्व का प्रतिपादन किया गया है। अस्तित्व और नास्तित्व पररूपर विगधी प्रतीत होते हैं। यदि अपेक्षा पर ध्यान दिया जाय अर्थात् यह सोचा जाय कि मनुष्य की अपेक्षा पुरुष में अस्तित्व है और पशु फी अपेक्षा से नास्तित्व है, तो विरोध नष्ट हो जाता है। सांजय एकान्त रूप से वित्यताबादी है और बौद्ध एकान्त रूप से अनित्यताचादी है। यह दोनों दर्शन परस्पर विरुद्ध प्रतीत होते है किन्तु यदि द्रव्य की अपेक्षा नित्यता स्वीकार की जाय और पर्याय की अपेक्षा अनिस्यता मान ली जाय तो दोनों का विरोध समाप्त हो जाता है । वस्तु के प्रत्येक धर्म के संबंध में सात भंग किये जा सकत है। उदाहरणार्थ-'नित्यत्व' धर्म के सात भंग इस प्रकार हैं-(१) जीव कथंचित् . नित्य है (२) कथाचित् अनित्य है। (३) जथंचित नित्यानित्य है (४) कथंचित् प्रवक्तव्य है १५१ कथंचित् नित्य भावव्य है (६) कथंचित् अनित्य नवजव्य है (७) कथंचित
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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