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________________ प्रथम अध्याय • [ ६३ ] इसके अतिरिक्त अंधकार वर्ण से काला और स्पर्श से शीत है, और वर्ण आदि पुद्गल में ही होते हैं, इसलिए भी अंधकार पौगलिक है।। किसी नियित प्रदेश में छत्र आदि के द्वारा प्रकाश का रुकना छाया कहलाता है। छाया को पौगलिक सिद्ध करने के लिए, अंधकार को पुद्गल रूप लिद्धं करने. वाली युक्तियों का ही प्रयोग करना चाहिए। पुद्गल के अणु और स्कंध भेद से दो भेद बतलाये जा चुके हैं। परमाणु भी पुद्गल द्रव्य रूप होने के कारण रूप, रस. गंध और वर्ण वाला है और स्कंध में भी रूप आदि पाये जाते हैं । इसीलिए सूनकार ने वर्ण आदि को पुगाल का लक्षण बताया है । स्कंध तो मूर्तिक है ही, पर परमाणु भी रूप रस आदि ले युक्त हाने के कारण मूर्तिक है। परमाणु निर्विभाग होता है । इस कारण जो प्रदश परमाणु का है वही प्रदेश रस, का वही रूप का, वही गंध का और वही स्पर्श का है । पृथ्वी, जल अग्नि और वायु परमाणुओं ले उत्पन्न हुई और होती हैं। इन जातियों के परमाणु भिन्न-भिन्न नहीं होते, केवल पर्याय के भेद से इनमें भेद होता है। शब्द पुद्गल के अनंत परमाणुओं का पिण्ड है ! जब महास्कंधों का परम्पर संघर्पण होता है तब शब्द उत्पन्न होता है। स्वभावतः अनन्त परमाणुओं के पिण्ड • रूप, शब्द के योग्य वर्गणाएँ समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं। जहां शब्द को उत्पन्न करने वाले वाह्य कारण मिलते हैं वहां वे शब्द रूप परिणत होने योग्य पुद्गल वर्गणाएँ शब्द के रूप में परिणत हो जाती हैं । इसी कारण शब्द पौद्गलिक कहलाता है। परमाणु पुद्गल नित्य है। उसका विभाग नहीं हो सकता। उसमें एक रूप, एक रस, एक गंध और दो स्पर्श अवश्य होते हैं। 'पुद्गल-स्कंध के विवक्षा-भेद से छह भेद भी किये जाते हैं-(१) चादर-बादर (२) बादर (३) वादर सूक्ष्म (४) सूक्ष्म बादर (५) सूक्ष्म १६) सूक्ष्म-सूक्ष्म । (१) बादर बादर-जो पुद्गल स्कंध खंड-खंड होने पर अपने आप नहीं जुड़ सकते हैं वे बादर चादर कहलाते हैं। जैसे-पृथ्वी, पर्वत आदि । (२) बादर-जो पुद्गल-स्कंध खंड-खंड़ करने पर अपने आप मिल जाएँ उन्हें बादर कहते हैं। जैसे-तेल, घी, दूध, जल श्रादि। (३) चादर सूक्ष्म-जो पुदगल हाथ से ग्रहण न किये जा सकते हो, व एक जगह से दूसरी जगह न ले जाए जा सकते हों, देखने में स्थूल दिखाई देते हों पर छिद-भेद न सकते हो, उन्हें चादर सूक्ष्म पुद्गल कहते हैं। जैसे-छाया, श्रातप, अंधकार, प्रकाश आदि । (४) सूक्ष्म वादर-जो पुद्गल सूक्ष्म होने पर भी स्थूल-से प्रतीत होते हैं वे सूक्ष्म बादर हैं। जैसे-वर्ण, रस, गंध, स्पर्श और शब्द।। (५ ) सूक्ष्म-जो पुगल इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं किये जा सकते हैं वे सूक्ष्म पुद्गल हैं । जैसे-कर्म वर्गणा आदि।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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