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________________ पद द्रव्य निरूपण इसके अतिरिक्त अंधकार यदि पुद्गल रूप होता तो उसे उत्पन्न करने वाले अवश्य दीखाई पड़ते, जैसे वस्त्र को उत्पन्न करने वाले अवयव-तन्तु-दाबाई पड़ते है। पर अंधकार जिससे बनता हैं वह कोई वस्तु कमी प्रतीत नही होती, अतपत्र अंधकार वस्तु नहीं है, वह पालोक (प्रकाश) या श्रभाव मात्र । नैयायिकों की यह मान्यता मिथ्या है। शंधकार श्रभाव रूए नहीं है किन्तु वह । सदभाव रूप पुद्गल की पर्याय है। पुद्गल अनेक प्रकार के होते, कोई स्यूल पुदगल होता है, वह हमारी गति में रुकावट डालता है। कोई पुदगल अत्यन्त सूक्ष्म होता है, उससे हमारी गति में रुकावट नहीं पड़ती। गति में समसावट न डालने के कारण यदि अंधकार को पुदगल न माना जाय तो प्रकाश भी युदगल रूप सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि प्रकाश भी हमारी गति में बाधक नहीं होता। हम जल अंधकार में चलते-फिरते हैं उसी प्रकार प्रकाश में चलते-फिरते हैं। फिर क्या कारण है कि श्राप अंधकार को प्रभाव रूर मानते हो और प्रकाशको अभाव रूप नहीं मानते ? जब दोनों में समान धर्म है तो दोनों को हा समान रूप ले स्वीकार करना चाहिए। अगर यह कहो कि प्रकाश का नाश होने से अंधकार हो जाता है इसलिए शंधकार को प्रकाश का अभाव मानते हैं तो हम यह कह सकते हैं कि चार का श्रभाव होने से प्रकाश हो जाता है, अतएव अंधकार को सदभाव रूर और प्रकाश को प्रभाव रूप मानो। शब्द की पुद्गल रूपता सिद्ध करते समय यह बताया जा चुका है कि जैसे विद्युत के उत्पादक कारण-उपादान रूप अश्यव-पहले दिखाई नहीं वेते. फिर भी विद्युत् पुद्गल है, इसी प्रकार अंधकार के जनक अवयव दृष्टि गौचर न होने पर भी वह पुद्गल है। इससे यह नहीं समझना चाहिए कि अंधकार के उपादान रूप शवयव है ही नहीं। तेज के परमाणु ही अंधकार रूप पर्याय में एरिणत हो जात हैं और अंधकार के परमाणु प्रकाश के रूप में पलट जाते हैं, क्यों कि यह दोनों पर्याय एक ही पुद्गल द्रव्य की हैं। शंका-पुद्गल-रूप वस्तुओं को देखने के लिए प्रकाश की श्रावश्यकता पड़ती है। अंधकार पुद्गल होता तो उसे देखने के लिए भी प्रकाश की जरूरत पड़ती : मगर दीपंक लेकर कोई अंधकार को नहीं देखता इसलिए अंधकार पुद्गल नहीं हैं। . समाधान-सभी पदार्थों में सब धर्म सरीखे नहीं होते पदार्थों में विचित्र विचित्र शक्तियां होती हैं । जो शक्ति एक में है वह अन्य में नहीं है। इसलिए घट आदि को देखने के लिए सूर्य श्रादि के प्रकाश की आवश्यकता है पर अंधकार को देखने के लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि सभी पदार्थों के धर्म एक सरीखे होते तो सूर्य को देखने के लिए भी दूसरे सूर्य की अावश्यकता पड़ती। ____ इस अनुमान से अंधकार पुद्गल रूप सिद्ध होता है अंधकार पौद्गलिक है. क्योंकि वह चनु-इन्द्रिय से देखा जाता है । जो चतु से देखा जाता है वह पुद्गल होता है, जैसे घट आदि।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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