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________________ प्रथम अध्याय . " द्रव्य पृथक्-पृथक अनेक नहीं है। धर्म और अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेश वाले, समस्त लोकाकाश में व्याप्त, नित्य और अखण्ड द्रव्य हैं। इसी प्रकार आकाश द्रव्य भी अनन्त प्रदेशी लोक और आलोक में व्याप्त एक अखण्ड द्रव्य है । यह तीनों और काल द्रव्य निष्क्रिय हैं। समस्त लोक में व्याप्त होने के कारण इनमें हलन-हलन नहीं होता। शंका-श्रागम में कहा है कि प्रत्येक द्रव्य प्रति क्षण उत्पन्न होता है, प्रति क्षण विनष्ट होता है और प्रति क्षण ध्रुव रहता है। यदि धर्म आदि द्रव्य क्रिया रहित हैं तो उनका उत्पाद कैसे होगा ? विना क्रिया के उत्पाद कैसे संभव है ? समाधान-धर्म आदि क्रिया हीन द्रव्यों में क्रिया कारण उत्पाद न होने पर भी अन्य प्रकार से उत्पाद माना गया है । उत्पाद दो प्रकार का है--(१. स्वानिमित्तक और (२) परनिमित्तक । प्रति समय अनन्त अगुरुलघु गुणों की षट्स्थान पतित हानि वृद्धि होने से स्वभाव से ही इनका उत्पाद और व्यय होता है, यह स्वनिमित्तक उत्पाद और व्यय है जिसमें क्रिया की आवश्यकता नहीं होती। परनिमित्तक उत्पाद-व्यय इस प्रकार होता है-धर्म द्रव्य कभी अश्व की गति में निमित्त होता है, कभी गाय की गति में और कभी मनुष्य या पद्दल की गति में निमित्त होता है। इसी प्रकार अधर्म द्रव्य कभी किसी की स्थिति में सहायक होता है और कभी किसी की स्थिति में। आकाश कभी घट को अवगाह देता है, कभी पट को अवगाह देता है, कभी और किसी को अवगाह देता है । इस प्रकार इन तीनों क्रिया: हीन द्रव्यों में प्रति क्षण भेद होता रहता है। यह भेद एक प्रकार की पर्याय है और जहाँ पर्याय में भेद होता है वहां उसके आधारभूत द्रव्य में भी भेद होता है । यही भेद इनका उत्पाद और विनाश है । अतएव स्पष्ट है कि निष्क्रिय द्रव्यों में प्रति क्षण उत्पाद और विनाश होता है। काल. पुद्गल और जीव द्रव्य अनन्त हैं। इन में से जीवों की अनन्तता का वर्णन पहले किया जा चुका है । जीव द्रव्य को एक मानने में अनेक अापत्तियां हैं। पुद्गल की अनकता प्रत्यक्ष सिद्ध है । एक पुदंगल दूसरे पुगल से सर्वथा भिन्न : प्रतीत होता है। काल द्रव्य भी अनन्त हैं। यद्यपि वर्तमान काल एक समय मात्र है, तथापि भूत और भविष्य काल के समय अनन्त होने के कारण काल को अनन्त कहा है । अथवा अनन्त पर्यायों के परिवर्तन का कारण होने से काल को अनन्त कहा है। . . इस प्रकार धर्म, अधर्म, श्राकाश और काल, ये चार द्रव्य क्रिया हीन हैं। धर्म, अधर्म और एक जीव-द्रव्य, ये तीन असंख्यात प्रदेशी हैं। पुदगल, आकाश और काल अनन्त हैं। अकेला पुद्गल द्रव्य मूर्तिक और शेष पांचों द्रव्य अर्निक हैं। जीव अकेला चेतनावान् और शेष पांच द्रव्य अचेतन है। काल के अतिरिक्त पांक . व्य अस्तिकाय ( प्रदेशों के समूह ) रूप हैं । आकाश को छोड़कर शेष पांच नव्ह लोकाकाश से ही विद्यमान हैं। . यहां द्रव्यों की संख्या निर्धारित कर देने से वैशेषिक श्रादि द्वारा मानी हुई
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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