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________________ .[ ५२ 1 षट् द्रव्य निरूपण . कहते हैं। कार्मण वर्गणा-पाठ कमों का समूह-श्रर्थात् जो पुद्गल ज्ञानावरण श्रादि कर्म रूप परिणत हों वे कार्मण वर्गणा हैं। इसी प्रकार जिन पुद्गलों से भाषा बनती है वे पुल भाषा वर्गणा के पुद्गल कहलाते हैं । जिनसे द्रव्य मन और श्वासोच्छ्वास बनता है वे मनोवर्गणा और . श्वासोच्छास वर्गणा के पुद्गल कहलात हैं। इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त सभी शरीर और भाषा आदि पौगलिक हैं। शब्द को श्राकाश का गुण मानना और अधकार को प्रकाश का अभाव मात्र ठीक नहीं है । पर इसका विवेचन आगे किया जायगा। ___ जीवास्तिकाय-चतना लक्षण वाला है । जीव तत्त्व का विवेचन पहले किया . जा चुका है। धर्म, अधर्म, श्राकाश, पुद्गल और जीव के साथ 'अस्तिकाय' शब्द का प्रयोग किया गया है। उसका श्राशय यह है-प्रदेशों के समूह का अस्तिकाय कहते हैं । तात्पर्य यह है कि काल के अतिरिक्त पांचों द्रव्य अनेक प्रदेशों के समूह रूप है। श्राकाश के अनन्त प्रदेश हैं और शेष चार द्रव्यों के असंख्यात-असं स्यात प्रदेश हैं। काल द्रव्य प्रदेश-प्रचय रूप नहीं है अतएव वह अस्तिकाय नहीं कहलाता । . . केवल ज्ञानशाली भगवान् महावीर ने इन्हा द्रव्यों का लोक बतलाया है। मूल में 'जिणहिं वरदंसिहि' यहां बहुवचन का प्रयोग करन से यह सूचित होता है कि अन्य पूर्ववर्ती तीर्थकरों ने भी ऐसा ही निरूपण किया है। श्रथवा गौतम आदि गण. '.. धरों ने भी यहीं प्रतिपादन किया है जो भगवान् ले कहा था। इससे लोक की शाश्वतता के अतिरिक्त कथन का प्रामाराय भी विदित हा जाता है। . . . मूल:--धम्मो अहम्मो अागासं, दव्वं इकिक माहियं । अणंताणि य दवाणि, कालो पुग्गल जंतवो ॥१४॥ छाया-धर्मोऽधर्म शाकाशं वन्य एकक मा न्यानम् । अनन्तानि च द्रव्याणि कालः पुद्ग नजन्तवः ॥ शब्दार्थ-धर्म, अधर्म, आकाश, यह तीन द्रव्य एक-एक कहे गये हैं काल, पुद्गल तथा जीव अनन्त द्रव्य हैं। .. भाग्य-लोक का स्वरूप निरूपण करने के पश्चात् द्रव्यों के नाम तथा उनकी संख्या का निरूपण करने के लिए यह गाथा कही गई है। . धर्म श्रादि द्रव्यों का लक्षण बतलाया जा चुका है। उनमें से धर्म, अधर्म और . आकाश द्रव्य को एक कहने का तात्पर्य यह है कि जैल प्रत्यक शरीर में अलग-अलग जीव है, एक का अस्तित्व दूसरे से सम्बन्ध नहीं हैं उस प्रकार धर्म नादि तीनः ।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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