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________________ [४ ] षट् द्रव्य निरूपण . __ है, उसका कहीं अन्त नहीं है । भावलोक अनन्त वर्ण पर्याय, अनन्त गन्ध पर्याय, . अनन्त स्पर्श पर्याय और अनन्त सस्थान पर्याय वाला है। उसका अन्त नहीं है। ... कल्पना भेद से लोक के तीन भेद भी हैं - (१) अधोलोक. (२) मध्यलोक और . (३) ऊलोक । मेरु पर्वत की समतल भ्रामे से नौ लौ योजन नीचे से अधोलोक का श्रारम्भ होता है। उसका श्राकार श्रीधे किये हुए सिकोरा के समान है। वह नीचे-नीचे अधिक अधिक विस्तीर्ण होता गया है। अधोलोक से ऊपर अर्थात् मेरु पर्वत के समतल से नौ सौ योजन नीचे से . . लेकर, समतल भाग ले नौ सौं योजन ऊपर तक अठारह सौ योजन का मध्यलोक . है। वह झालर के समान श्राकार वाला हं। सध्यलोक से ऊपर का समस्त लोक ऊध्वलोक कहलाता है। उसका आकार मृदंग सरीखा है। अधोलोक में सात नरक-भूमियां हैं। वे एक-दुसरी से नीचे हैं और अधिक-.. अधिक विस्तार वाली हैं । यद्यपि एक-दूसग के नीचे हैं, फिर भी आपस में सटी. हुई नहीं हैं, उनके बीच में बहुत बड़ा अन्तर है। इन पृथ्वियों के बीच में घनोदधि, घनवात और तनुवात तथा श्राकाश है। पहली पृथ्वी में भवनवासी देव भी रहते है। इन पृथ्वियों का विस्तृत वर्णन 'लर क-स्वर्ग' नामक अध्ययन में किया जायगा। मध्यलोक में प्रसन्यात द्वीप-समुद्र हैं। यह द्वीप और समुद्र गोलाकार हैं और एक-दूसरे को घेरे हुए हैं। इन सब के बीच में जम्व-द्वीप है । जम्वू-द्वीप का यूर्व-पश्चिम में तथा उत्तर-दक्षिण में एक लाख योजन का विस्तार है । इसे घरने वाले लवण समुद्र का विस्तार इससे दुगुना-दो लाख योजन का है । लक्ण समुद्र धातकी खंड द्वीप से चारों ओर घिरा हुआ है श्रार उसका विस्तार लवण समुद्र से दुगुना-चार लाख योजन का है। धातकी खंड द्वीप के चारों तरफ कालोदधि समुद्र है, उसका विस्तार धातकी खंड से दुगुना आठ लाख योजन का है। कालोदधि समुद्र पुष्करवर द्वीप से श्रावृत्त है और उसका विस्तार सोलह लाख साजन का है। इसके चाद पुष्करोदधि समुद्र दुगुना विस्तार वाला है। इसी क्रम से असंख्यात द्वीप और असंन्यात समुद्र मध्यलोक में विद्यमान हैं। अन्त में स्वयंभूरमण द्वीप और स्वयंभूः . .. ' रमण समुद्र है। ___ जम्बू-द्वीप के बीचोंबीच सुमेरु पर्वत हैं । जम्बू-द्वीप में पूर्व से पश्चिम सक लम्बे छह पर्वत हैं। इन पर्वतों को वर्षधर कहते हैं। इनके द्वारा अम्वू-द्वीपः के सात विभाग हो गये हैं। इन्हें विभक्त करने वाले पर्यत हिमवान, महाहिमयान, निषध, नील, रुक्मि और शिखरि हैं । इन विभागों को सात क्षेत्र कहते हैं। वे इस प्रकार. ई-भर तत्क्षेत्र, हैमवतक्षत्र, हरिक्षेत्र, विदेहक्षेत्र, रम्यक्षेत्र, हैरण्यवतक्षेत्र और ऐराचतक्षेत्र । भरतक्षेत्र दक्षिण में है, उससे उत्तर में हैमवत, हैमवत से उत्तर में हरि, हरि से उत्तर में विदेह, विदेह से उत्तर में रम्यक्, रस्य से उत्तर में हरण्यवत और हैरण्यवत से उत्तर में ऐरावत क्षेत्र है। जम्बू-दीप में जितने क्षेत्र, पर्वत और मेल हैं उससे दुगुने धातकी खंड द्वीप ..
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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