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________________ es प्रस्तावना. ल, पूर्वाचार्यप्रणीत जैनदर्शनना गहन ग्रंथोनुं अध्यन करे , त्यारेज तेने सर्व दर्शनो करतां जैनदर्शननी महत्वता, नासन थाय . जैनदर्शननुं यथार्थ ज्ञान थवा सारू प्राचीन तथा अर्वाचीन महान् श्राचायोए अनेक ग्रंथोनी रचना करेती बे; परंतु एवा निःखार्थ परोपकारी महात्माए ज्ञानरूप लक्ष्मी जैनोने वारसामां आपां उत्तरोत्तर प्राप्त थतां वर्तमान कालना जैनोना कबजामां ते एवी तो बंधनमां पडेली डे के, ते ज्ञानरूप लक्ष्मीना उत्तम नगीना अति जीज्ञासुऊने पण दृष्टिपथे श्राववा पामता नथी. श्राप्रमाणे लखवानो हेतु ए के परमकृपालु श्री. मद् विजयानंदसूरिजीने (ग्रंथकर्त्ताने ) एक प्रसंगे अमुक शेहेरनो ज्ञान नंडार अवलोकन करवानी जीज्ञासा थर हती. तेवा धर्मधुरंधर महान् श्राचार्यने पण त्यांना श्रावकोए ज्ञानजंडार बताववामां आनाकानी करी हती. श्रावी अज्ञानता ज्या ज्या व्यापेली , ते ते स्थलना जैनो जैनदर्शननी ज्ञानरूप लक्ष्मीनो समुपयोग करताज नथी, तेमज बीजा जीज्ञासुर्डने पण करवा देता नथी. महाविद्वान् आचार्योए परम उपगार बुद्धिए अति प्रयासथी अमूल्य ग्रंथोनी रचना करी जैनीउने जे खाधिन करेला ,ते मात्र सिंधुकमा राखवासारु तेमज बार मासे एक दिवस धूप देवा अने वज नाखवासारु नहि, परंतु नदीना जलनी जेम ज्ञाननी पिपासावालाने तृषा बीपाववासारु प्रगट दृष्टिपथे आवे तेवी रीते राखवासारु खाधिन करेला .मारो लखवानो हेतु ए डे के जैनदर्शननुं ज्ञान बीजा दर्शनवालाना ज्ञानना प्रमाणमां बहु अल्प विस्तारमा प्रसिद्धिमां श्रावेलु . अन्य दशनवालाउना जेजे महान् ग्रंथो बे ते सर्वे प्रगट थएंला , त्यारे जैनदर्शनना महान् ग्रंथो ज्ञानजंडारोमांज मात्र बिराजे . जुर्व सम्मतितर्क, रत्नावतारिका प्रमुख. जैनदर्शनधारी श्रावक समुदायतो आवा अमूल्य ग्रंथोना ज्ञानथी अतिदूर .साधु समुदायमां पण विरला . सारांश के वर्तमान कालना जैनोने ज्ञान प्राप्त करवानी बहुज अल्प जिज्ञासा . जैनदर्शनमां सात क्षेत्रमा अव्यनो व्यय करवानी जिनाज्ञा जे. सात देत्रमा ज्ञानक्षेत्रनो समावेश के; था क्षेत्र एवं तो बलवान डे के तेना रक्षण उपर जैनदर्शनना अस्तित्वनो परम आधार . ए प्रमाणे जिनाज्ञा बतां वर्तमान कालना जैनो आ श्राधारजूत क्षेत्रमा बिलकुल व्यय श
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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