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________________ तृतीय परिबेद. (एए) होतो एवा अनंत बलवान् तीर्थंकरपण लोकोने कालथी बचाववाने समर्थ नथी तो पड़ी बीजो कोण समर्थ डे ? स्त्री, पुत्र मित्रादिना स्नेहरूप नूतने दूर करवा वास्ते शुभमति जीव श्रशरण जावना नावे. ३ संसारजावना कहिये बियें. बुद्धिमान् तेमज बुद्धिहीन, सुखी तेमज फुःखी, रूपवान् तेमज कुरूपवान्, खामी तेमज सेवक, वैरी, राजा . तेमज प्रजा इत्यादि देवतामनुष्य, तिर्यंच, नारकिना अनेक प्रकारना कर्मवशथी वेष धारण करीने श्रा संसाररूप अखाडामां था जीव नाटक करेजे. तथा महारंज, मांसजण, मदिरापानादि कारणोथी अनेक प्रकारनां पापनो बंध करीने, महाअंधकारवाली नरकनूमिकामां जश् पडे बे, त्यां अंगछेदन, अग्निप्रज्वलनादि क्वेशरूप महाकुःख जे जीवने थाय बे ते पुःखोजें खरूप केवली पण कथन करी शकता नश्री. श्रा नरकगति कही.तथा कपट,जुतुं बोलवू इत्यादि कारणोथी प्राणी तिर्यंचगतिमा सिंह, वाघ, हाथी, मृग, बेल, बकरी प्रमुखनां शरीर धारण करे. तथा ते गतिमां दुधा, तृषा, वध, बंधन, ताडन, तर्जन, रोग, हलवहन इत्यादि जे कुःख सदा ते जीवोने सहन करवां पडे ते केहेवाने कोण समर्थ डे ? था तिर्यंच गति कही. __ तथा खाद्य, अखाद्य, विवेकशून्यता, मनमां खजानो अनाव, मा, बेन, दीकरी गमन करवामां एक समानता,निःशंकता वहन डे ज्यां, एवा अनार्य मनुष्यमां, निरंतर जीवघात, मांसजक्षण, चोरी, परस्त्रीगमनादि अत्यंत कनिष्ठ पापकर्म महाकुःख उत्पन्न करनार ज्यां थया करे ,तथा थायदेशमां पण क्षत्रिय, ब्राह्मणादि, अज्ञान, दरिलता, कष्ट, दौाग्य पणुं रोगादिश्री पीडित , तथा पराधीनता, माननंग, सेवकनावप्रमुख मुःख, निरंतर जोगवां पडे ज्यां, तथा अग्निमां अत्यंत तपावेली - ज, जेम एक एक रोममा एक एक सूत्र को जुवान पुरुषने परोववामा आवे तेम ते सघली, समकाले चारे बाजुए परोववामां आवे तेथी जे मुःख उत्पन्न थाय तेनाथी भाव गणुं फुःख स्त्रीना गर्जमां ज्यारे उत्पन्न थाय डे त्यारे जोगवे , ते पुःखथी अनंतगणुं फुःख जन्मसमयें जोगवे , तथा बाल अवस्थामा मल, मूत्र, धूलमां बालोटवू. तथा मूर्खता १ भक्ष्य. २ अभक्ष्य. ३ निर्भयपणुं.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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