SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ए) जैनतत्त्वादर्श. ते पण अनित्यरूप राक्षसना जद थया, तो पड़ी केलना गर्न समान निःसार जे जीवोनां शरीर ते था अनित्यरूप राक्षसथी केवी रीतें बचशे ? वली लोको बिलाडीनी पेठे श्रानंदित थश्ने दूधनी पेठे विषय सुखनो खाद लहे, परंतु लाकडीना मारने देखता नथी; नावार्थ ए ले के, विषयनोगमा मग्न थ श्रानंद तो माने बे, परंतु जन्मांतरमां नरकपतनरूप संकटथी मरता नथी. वली जीवोनां शरीर पाणीना परपोटा समान, बे, तथा जीवित ध्वजासमान चंचल डे, लावण्य, स्त्री, परिवार, आंखनी पांपण जेम चंचल , युवावस्था हाथीना काननी पेठे चंचल बे, स्वामिपणुं खप्ननी श्रेणी समान , लक्ष्मी वीजली जेम चपल बे. एवीरीतें सर्व पदार्थोर्नु अनित्यपणुं विचारतां, प्यारा स्त्री पुत्रादि मरी जाय तो पण पोताना मनमा शोक न करे; अने जे मूर्ख जीव, सर्व नावने नित्य माने ते जीर्ण पांदडानी कुंपडीनो नाश थवाथी पण रात दिवस रुदन करे. ते कारणथी तृष्णानो नाश करी ममत्व रहित थ शुबुद्धिवाला जीव अनित्यनावना जावे. २ अशरणनावना- पिता, माता, पुत्र, जार्या प्रमुख विद्यमानबतां, अत्यंत आधि व्याधिना समूहरूप शृंखलामां बंधायेला रुदन करता जीवोने कर्मरूप योझा, यमराज (काल) ना मुखमां प्रदेप करतां थकां ( फेंकेडे त्यारे) बहुज कुःख थाय . जे लोक शरणरहित अनाथ , ते करशे ? तथा नाना प्रकारना शास्त्र विषयोने जाणनारा, तथा अनेक प्रकारना मंत्र, यंत्रोनी क्रिया जाणनारा, तथा ज्योतिष विद्याना जाणनारा, तथा अनेक प्रकारनी औषधि, रसायन प्रमुख वैद्यक शास्त्रनी तमाम क्रियामां कुशल, एवा विद्वानोनी कुशलता तथा क्रिया, कालनी सामे कांश्पण करवामां समर्थ थ नहि. तथा नाना प्रकारना शस्त्रोवाला शूरवीर योहानी सेनाथी परिवेष्टित, (चो तरफ वीटायेला) तथा नानाप्रकारना मदऊर हाथीउनी जेने वाड , एवा इंज, वासुदेव, चक्रवर्तिसमान बलवान् पण कालना घरमां खेंचाता चाव्या जाय . अत्यंत दिलगीरी के प्राणियोने कोनुं शरण नथी. तथा पृ. थ्वीनुं बत्र अने मेरुनो दंड करवाने समर्थ, तेमज जेने अल्पपण क्वेश न १ सांकल वा बेडी.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy