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________________ (७) वितीय परिछेद. श्रा पांच निमित्त विना बीजं कोश्पण निमित्त नथी, ए पांचवें स्वरूप आगल उपर लखवामां आवशे. । प्रत्यदमां पण पांचे निमित्तोश्री सर्व कांश उत्पन्न थाय ने ते जोयें बिये. जेम के बीजांकुर ज्यारे बीज ववाय , त्यारे काल पण यथानुकूल होवो जोश्य, तेमज बीज, जल अने पृथ्वी इत्यादिना खजाव पण अवश्य होवा जोश्य, तेमज नियति पण कारण जे-जे जे पदार्थोना खजाव ते ते पदार्थोना तेवा तेवा जे परिणाम थाय डे तेनुं नाम नियति बे; वली अष्टविध कर्मपण कारण बे. तथा पुरुषकार (जीवोनो उद्यम ) पण कारण बे, आ पांच वस्तु अनादि , कोश्य रचेल नथी; कारण के वस्तुना जे जे खनाव जे ते ते सर्व अनादिथी . जो कदी वस्तुमां पोतपोताना स्वजाव न होय तो तो कोश् वस्तुज सत्रूप रेहेशे नहि. सर्व शशशृंगवत् असत् थ जशे. वली प्रत्यद देखाय बे एवां, पृथ्वी, आकाश, सूर्य, चंडमा इत्यादि पदार्थों एवीरीतें अनादिरूपथी सिक, तेमज पृथ्वीउपर जे जे रचना देखाय ने ते सर्व प्रवाहथी एमज चाली आवे बे. वली जगत्ना जे जे नियमो के ते सर्व श्रा पांच निमित्त विना श्रश् शकता नथी. ते कारणथी सर्वे पदार्थो पोतपोताना नियमोमां . जो तमे अव्यनी शक्तिनेज ईश्वर मानी लेशो तो तो अमने कांश हानि नथी; कारण के अमे अव्यनी अनादि शक्तिनुं नाम इश्वर राखी लेशु, अने ज्यारे तमे अव्यनी अनादि शक्तिने ईश्वर मानी त्यारे तमारो अमारो विवाद दूर थयो; पड़ी तमे जे लख्युं ने के जडमा यथावत् मलवानी शक्ति नथी, ते पण तमारं लखाण मिथ्या थयुं. वली जुर्ड के जगत्मां जड पदार्थों अनेक तरेहथी पोतपोतानी मेले पूर्वोक्त पांच निमित्तोथी पोतपोतामां मली जाय . जेम के सूर्यना किरणो वादलामां पडवाथी अधनुष्नुं बनवं, संध्या होवू, पांच वर्णनां वादलांनी एकत्र घटा थवी, चंड सूर्यनी आस पास कुंमालां थवां, श्राकाशमां पवनोना मेलापथी जल तेमज अग्निर्नु उत्पन्न थर्बु, तेमज वरसाद वरसवाथी घास तृणादि अनेक प्रकारनी वनस्पतिर्नु उत्पन्न थर्बु, तथा अनेक प्रकारना कीट पतंग प्रमुख जीवोनुं उत्पन्न थर्बु इत्यादि १ जीवकृत पुरुषार्थ वा तेणें करेलो शुभाशुभ यत्न.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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