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________________ ' दितीय परिवेद. (६७) अन्यनी प्रेरणा विना ईश्वर पोतेज प्रवर्ते जे एम सिद्ध थाय तो तो सर्व पदार्थना यथावस्थित स्वरूप जाणनारा सर्वज्ञ सिझ थाय, ज्यां सुधी श्रा बनेमांथी एक सिक न थाय त्यां सुधी बीजानी सिद्धि कदी न थाय, वली हे ईश्वरवादि ? अमे तमने पुलिये बियें के जो ईश्वर सर्वज्ञ तेमज वीतराग ने तो शा माटे बीजा जीवोने असत् व्यवहारमा प्रवर्त्तावे ? कारण के जे विवेकी होय जे ते मध्यस्थज होय जे तेमणे तो जीवोने सत् व्यवहारमांजप्रवृत्त करवा जोश्ये, परंतु असत् व्यवहारमा नहि प्रवृत्त करवा जोश्ये, अने ईश्वर तो जीवोने असत् व्यवहारोमां पण प्रवावे तेथी ईश्वरने सर्वज्ञ तेमज वीतराग केम केहेवा जोश्ये? पूर्वपदः- ईश्वर तो सर्व जीवोने शुज कर्म करवामांज प्रवर्त्तावे , तेथी चगवान् तो सर्वज्ञ अने वीतरागज डे; अने जे जीव अधर्म करनारा के तेउँने असत् व्यवहारमा प्रवावीने पनी नरकपातनुं फल आपे बे, जेथी ते जीवो पुःखथी मरीने फरी पाप न करे, तेथी उचित फल देवाथी ईश्वर (नगवान् ) विवेकवान् तेमज वीतराग सर्वज्ञ बे, तेमां कांश्पण दूषण नथी. उत्तरपदः-श्रा श्रापर्नु केहेतुं विचारविनानुं बे, कारण के प्रथम पाप करवामां तो ईश्वरज प्रवृत्त करे , ईश्वर विना बीजो तो कोश् प्रेरक नथी, वली जीव पोते तो कांश करी शकतो नथी कारण के ते तो अज्ञानी ने तेथी पापमां के धर्ममा पोते प्रवृत्त थ शकतो नथी, तो पडी प्रथम पाप कराववामां जीवने प्रवर्त्तववो. पनी नरकमां नाखीने तेनुं फल नोगवावq, पड़ी धर्ममां प्रवर्त्ताववो वाह ? शुं ईश्वरनी ईश्वरता अने विचारपूर्वक काम ? पूर्वपदः-ईश्वर (जगवान् ) जीवोने कदी प्रवद्वता नथी परंतु जीव पोतेज प्रवः बे. तेथी जे जीव जेवां कर्म करे , ते कर्मना वशथी ईश्वर (नगवान् ) तेवां तेवां फल ते जीवोने आपेले. जेम को राजा राज्य करे ने ते चोरी करवानी मना करे , कोश्ने चोरी करवानु केहेता नथी, तांपि को सख्स चोरी करशे तो ते चोरने अवश्य राजा शिदा करशे, तेवीज रीतें ईश्वर पाप तो करावता नथी, परंतु पाप करनारने शिक्षा करे .
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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