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________________ जैनतत्त्वादर्श. कारण के पूर्वोक्त तमारुं अनुमान जेम अमारामतमां प्रथमश्रीज सिद्ध तेमज सिद्ध करे , ते कारणथी सिद्धसाधन दूषण तमारा अनुमानमां आवे . अमारा मतमा प्रथमथीज नीचे मुजब सिक. संपूर्ण आ जगत्नी जे विचित्रता डे ते सर्वे कर्मना फलथी जे एम अमे मानिये बियें, कारण के आ जारत वर्षमां अनेक देशोमां, टापुर्डमां, हेमवंतादि पर्वतोमां अनेक प्रकारना मनुष्यादि प्राणी जे वास करे , तथा तेऊने सुख मुःखादि अनेक तरेहनी जे अवस्था बनी रही डे ते सर्व अवस्थानुं कारण कर्मज . बीजु कोश् नथी, वली देखवामां पण कर्मज कारण थश शके बे, कारण के ज्यारे को पुण्यवान् राजा राज्य करे बे, त्यारे तेना राज्यमां सुकाल, निरुपलव होय , ते, ते राजाना शुज कर्मनो प्रजाव . ते कारणथी जे यथोचित रीतें जीवोने फल आपेले ते कर्म . कर्म जीवने आधीन , अने जीव चेतन होवाथी बुद्धिमान् डे, तेथी बुद्धिमानने आधीन थश्ने कर्म यथोचित फल आपे . आरीतें तमारा अनुमानमां सिझसाधन दूषण . जो एम केहेशो के अमेतो विशिष्ट बुद्धिवाला ईश्वरनेज सिक करिये बिये, परंतु सामान्य बुकिवाला जीव नथी सिक करता, तो तो तमारं दृष्टांत साध्यविकल ले. वांसला, श्रारि प्रमुखमां ईश्वर अधिष्ठितपणांनो व्यापार तो उपलब्ध थतो नथी परंतु सुथारादिनो व्यापार अन्वयव्यतिरेकथी उपलब्ध थाय . पूर्वपदः-सुथारादिपण ईश्वरनी प्रेरणाथीज ते ते काममा प्रवर्ते ले अमारं दृष्टांत साध्यविकल नथी. उत्तरपक्षः-त्यारे तो ईश्वर पण बीजा ईश्वरनी प्रेरणाथीज प्रवर्तता हशे, परंतु पोतानी मेले प्रवर्त्तता नहि होय, वली ते ईश्वरपण बीजा ईश्वरनी प्रेरणाथी प्रवर्त्तता हशे, एवी रीतें तो अनवस्था दूषण आवशे. पूर्वपक्षः-बढईप्रमुख जीव तो सर्वे अज्ञानी ले तेथी ईश्वरनी प्रेरणाथी ज पोत पोताना काममा प्रवर्ते डे, अने ईश्वर ( जगवान् ) तो सर्व पदार्थोना झाता ने तेथी अनवस्था दूषण नथी. __ उत्तरपक्षः-श्रा तमारं केहेवू असत् बे. कारण के तेमां इतरेतर दूषण आवे . प्रथम ईश्वर जो सर्व पदार्थना यथाऽवस्थित खरूपना ज्ञाता सिक थाय, तो अन्यनी प्रेरणा विना पोतेज प्रवर्ने जे एम सिह थाय,जो .
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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