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________________ (६०) जैनतत्त्वादर्श. पूर्वपदः-ज्यारे आत्माने व्यामोह जे त्यारे तो अद्वैततत्त्वनो उपदेश कस्यो जाय ? उत्तरपक्ष:- ज्यारे आत्मानो व्यामोह दूर थशे त्यारे तो आत्मा श्रवश्य अवस्थांतरने प्राप्त थशे, ज्यारे अवस्था बदलाशे, त्यारे अवश्य हैतापत्ति थ जशे. वली ज्यारे अद्वैत तत्त्वनो उपदेशक परने उपदेश करशे त्यारे अवश्य परने मानवो पडशे. पड़ी अद्वैततत्त्व परने निवेदन करवू अने अद्वैततत्व मानवु ा कथन तो मारो पिता कुंवारो (बाल) ब्रह्मचारी ने तेना जेवं थयु. आ वचन केदेवाश्री उन्मत्ताश्नो दोष आवशे. पोताने अने परने बनेने जो मानशे तो द्वैतापत्ति अवश्य थशे. श्रा कारणथी अद्वैतमत युक्तिविकल ने. पूर्वपदः- परमब्रह्मरूप सिहज सकल नेदज्ञान प्रत्ययोना निरालंबनपणांनी सिकि. उत्तरपदः-श्रा कथन पण तमारूं ठीक नथी. कारण के परम ब्रह्मनीज सिकि नथी. जो जे तो स्वतः सिद्धि के परतः सिकि ? स्वतः सिकि तो नथी, जो होय तो तो कोश्नो पण विवाद रहे नहि. जो परतः सिधि ले तो झुं अनुमानथी ले के आगमथी ? जो कहो के अनुमानथी ले तो ते अनुमान के ? पूर्वपदः-ते अनुमान था . विवादरूप जे अर्थ ले ते प्रतिज्ञासांत प्रविष्ट ब्रह्मजासनी अंतर , प्रतिनासमान' होवाथी, जे जे प्रतिजासमान ले ते ते प्रतिनासांत प्रविष्टज देखायडे, जेम प्रतिनास आत्मा प्रतिनासमान बे, सकल अर्थ सचेतन अचेतन विवादरूप ले ते कारणथी प्रतिजासांत प्रविष्ट. घटपटादि श्रा अनुमान बे. उत्तरपदाः-श्रा अनुमान तमारूं सम्यक् नथी (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत आ त्रणे प्रतिज्ञासांत प्रविष्ट होवाथी साध्यरूपज थया. पूर्वपदः-त्यारे तो (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत, श्रा त्रणेना नहि होवापणाथी अनुमानज नहि बनी शके. जो एम कहो के (१) धर्मी (२) हेतु (३) दृष्टांत आ त्रणे प्रतिजासांत प्रविष्ट नथी, तो तेउनीज साथे हेतु, व्यभिचारी थशे, जो एम कहो के अनादि विद्या वासनाना बलथी हेतु दृष्टांत जे ते प्रतिजासना बाहिरनी पेठे निश्चय
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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