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________________ शदश परिच्छेद. (२७३ ) तेनेज श्रमे धर्मलाज कहीये बीये. वली एम पण नथी के तमे अमने वंदना नथी करी. तमे पण पोताना मनथी वंदना करी बे. मनज सर्व का - - मां प्रधान बे, ते कारणथी मे धर्मलान कह्यो बे, अने तमोए पण मारी परिक्षावास्तेज मनथी नमस्कार करेल बे. विक्रम राजाए तुष्टमान थइ हाथीथी नीचे उतरी सर्व संघनी समक्ष श्राचार्यने वंदना करी. एक क्रोड सोनामहोर नेट मुकी, श्राचार्ये सोनामहोर लीधी नही, कारण के ते त्यागी हता. राजाये पण पाठी लीधी नहि. श्राखर श्राचार्यनी झायी संघना गृहस्थोये जीर्णोद्धारमां वापरी दीधी. राजाना दफतरमां तो या प्रमाणे लखेलुं बे. श्लोक ॥ धर्मलाज इति प्रोके, दूराडु ह्रितपाये ॥ सूरये सिद्धसेनाय, ददौ कोटिं धराधिपः ॥ १ ॥ श्रीविक्रम रा जानी सन्मुख सिद्धसेन दिवाकरे एम पण कर्तुं हतुं के ॥ गाथा ॥ पुणे वास सहस्से, सयंमि वरिसाण नव नवइ कलिए || होइ कुमर नरिंदो, तु विकमराय सारियो ॥ १ ॥ श्रर्थः पुण्य एवां एक हजार एकसो नवाणुं वर्षे, हे विक्रमराय तमारा जेवोज कुमारपाल नृप थशे. अन्यदा सिसेनजी चित्रकूटमां गया. चित्रकूटमां एक अति प्राचीन जिनमंदिर हतुं, तेमां एक बहु मोटो स्थंज तेमना देखवामां श्राव्यो. कोइने पुढयं के, श्रा स्थं शानो बे ? तेथे कयुं के पूर्वाचार्योंये तेमां रहस्य पुस्तको मुhai बे. या स्थं विविध औषध द्रव्यनो बनेलो, वज्जनी जेम जलादिथी ने बे. कोथी या स्पंज खोली शकातो नथी. ते सांजली सिसेनजीये ते स्थंजनी गंध लइ प्रत्यौषधरस तेना उपर बांट्यो, तेथी कमनी जेम स्थं खिली गयो. तेमां पुस्तक दीठां. तेमांथी एक पुस्तक लइ वांचतां प्रथम पत्रमां वे विद्या लखेली प्राप्त थइ. एक सरसव विद्या, बीजी सुवर्ण विद्या. सरसव विद्यानुं ए बल हतुं के कार्य यावी पडे त्यारे मांत्रिक जेटला सरसव जलाशयमां नांखे, तेटला अखार बेतालीसे हथीआर सहित बहार यावे, परदलनो जंग करी कार्य सिद्ध घयेथी अदृश्य घर जाय. हेम विद्याथी कां पण मेहेनत बिना शुद्ध डेम कोटि गमे ते धातुथी इ शके. श्रा बने विद्या सिद्धसेनजीये सारी रीते बीधी. उपरांत श्रागल वांचवा जाय बे के स्थंज बंध थइ गयो, सर्व पुस्तको वचमां रही गयां, अने आकाशवाणी यइ के तुं श्रा पुस्तकोने वांचवाने योग्य नथी,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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