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________________ धादश परिच्छेद. (KES) जेर्जए ४ श्री प्रजवस्वामिनी पाट उपर श्री शिय्यंजवस्वामि बेठा मनक साधु वास्ते श्रीदशवैकालिक सूत्रनी रचना करी तेनी उत्पत्ति या प्रमाणे - एकदा प्रस्तावे प्रजवस्वामिने रात्रिना विचार थयो के मारी पाट उपर कोण बेसशे ? ज्ञानबलथी विचारतां सर्व संघमां पोतानी पाट योग्य कोइ देखवामां श्रव्यं नही, तेथी पर दर्शनवालाई तरफ ज्ञानवलयी देखवा लाग्या. अनुक्रमे तेमणे राजगृह नगरमां शिय्यंजव जट्टने यज्ञ करतां थकां पोतानी पाट योग्य दीवा तत्काल प्रभवस्वामि विहार करी सपरिवार राजगृह नगरमां श्राव्या. पोताना बे साधुने आदेश कयों के तमे यज्ञस्थानमां जई निक्षावास्ते धर्मलान कहो, अने यज्ञ करनाराने या प्रमाणे कहो- “अहो कष्टमोकष्टं तत्त्वं विज्ञायते न हि " बने साधु गुरुना प्रदेश मुजब पूर्वोक्त सर्व कर्यु. ज्यारे ब्राह्मणोए "होकष्टं " इत्यादि श्रवण कर्यु, ते वखते यज्ञवाडामां शिय्यंजव ब्रा ने यज्ञदीक्षा लेवानी हती, तेथी ते यज्ञवाडाना दरवाजामां उजा हता, जेथी तेमणे पण मुनियोनुं “ अहोकष्टं " इत्यादि श्रवण कर्यु. तकाल ते विचारवा लाग्या के श्रावा उपशमप्रधान साधु कदापि - सत्य बोलता नथी, तेथी तेमना मनमां संशय थयो, जेथी उपाध्याय ने पुयं के तत्त्व शुं बे ? उपाध्यायजीए कर्तुं के चार वेदमां जे कथन करेल बे तेज तखबे, वेद उपरांत बीजुं तत्त्व नथी, शिय्यंजवे कयूं के तमे ददिपाना लोथी मने तत्त्व बतावता नथी. वली रागद्वेषरहित, निर्मम, निःपरिग्रह, शांत, दांत, महंत एवा मुनियोनुं कथन कदापि सत्य होतुं नथी, तेथी हवे तमे मारा गुरु नथी, तमे तो जन्मथी जगत्ने उगवानी बाजी रची बेठा हो, माटे शिक्षायोग्य बोः वास्ते कां तो मने तत्त्व - बतावो ? अने तेम नहि करशो तो तलवारथी हुं तमारुं शिरछेद करीश. एमकतां यत्यंत क्रोधना आवेशमां आवी जवाथी मियानथी तलवार बहार काढी. उपाध्याये प्राणांत कष्ट देखी कयुं के श्रमारा वेदोमां पण एम लखेल बे, तथा अमारी आम्नाय पण एवीज बे के ज्यारे को मारुं शिरछेद करवा यावे त्यारेज तत्त्व कहेवुं, अन्यथा नही. तेथी हवे हुं तमने तत्व कहुं हुं. श्रा यज्ञस्थंजनी नीचे श्रहंतनी प्रतिमा स्थापन करेली बे, अने तेनी प्रवृन्न रीते नीचेज पूजा करवामां आवे बे.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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