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________________ एकादश परिजेद, (५३५) रूप अमृतमां फेर दाखल करनारा थया डे, कारण के पूर्व जैनमत तथा कपिलमत शिवाय बीजो कोश पण मत नहोतो. कपिल मतवाला पण देव तो श्री श्रादीश्वर (रीषनदेव ) नगवाननेज मानता हता.निदान था डंडा श्रवसप्पिणिमां सर्व आश्चर्य गणाय . त्यार बाद नहिलपुर नगरमां श्क्ष्वाकु वंशी दृढरथ राजानी नंदा नामा राणी, तेना पुत्र श्री शीतलनाथ नामना दशमा तीर्थंकर थया. श्रा तीर्थकरना शासनमा हरिवंशनी उप्तत्ति थश्तेनी कथा लखीए बीए. कौशांबि नगरीमां वीरो नामनो कोली रहेतो हतो. तेने वनमाला नामनी अत्यंत रूपवंती स्त्री हती. नगरना राजाये तेणीने हरण करी पोतानी स्त्री बनावी. वीरो कोली स्त्रीना विरदयी बावरो थर गयो. हा वनमाला! हा वनमाला! एम बोलतो बोलतो नगरमा फरवा लाग्यो. एकदा वर्षाकालमा राजा वनमालानी साथे मेहेलना फरूखामां बेगेहतो. राजा राणीये वीराने ते हालतमां देखी बहु पश्चाताप कर्यो; डेवट निश्चय कर्यों के आपणे था काम बहुज बुलं कर्यु, तेज वखत वीजली पडवाथी राजा राणी बंने मरीने हरिवर्ष क्षेत्रमा स्त्री, पुरुष युगलीया थया. वीरो कोली राजा राणीन मरण सांजली राजी थयो, पढी तापस बनी तप करवा लाग्यो. अज्ञान तपना प्रजावधी किल्विष देवता थयो. अवधिज्ञानथी राजा राणीने युगलीया थयेला देखी, विचार कयों के, आ जक परिणामी तथा अल्पारंजी , तेथी मरीने देवता थशे, तो पड़ी ढुं माझं वेर शीरीते लश्श ? तेथी एवो उपाय करूं के, जेथी ते बंने मरीने नर्कमां जाय. एवो विचार करी ते बंनेने त्यांची उगवी जरत क्षेत्रमां चंपा नगरीमा इक्ष्वाकु वंशी चंडकीर्ति राजा अपुत्री गुजरी गयो हतो, अने हवे श्रा नगरीनो राजा कोण थशे? एवी चिंतामां सर्व लोको जे श्रावी पड्या हता, तेउने देवताये श्रा बनेने सोप्या, अने कह्यु के था तमारो हरि नामनो राजा थशे. तेने तख्तनशीन करो? तेनी श्रा हरणी नामनी राणी . तेठने खावावास्ते तमारे फल मिश्रित मांस श्रापवू, अने तेउने शिकार करवानी टेव पाडवी. लोकोये तेज प्रमाणे कयु. ते बंने पापमा आसक्त थवाथी मरीने नर्कमां गया. तेउनी उलाद सर्व हरिवंशवाली कहेवाश्. आ वंशमां वसुराजा थया,इति श्रीहरिवंशोत्पत्ति.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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