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________________ एकादश परिछेद (५३३) वखत सुधी राज्य करी श्री अजीत नाथजीए तो खयमेव दीक्षा लीधी. तप करी, केवलज्ञान पामी बीजा तीर्थंकर थया. पनी सगर राजा थया, अने बीजा चक्रवर्ती पण थया. सगर राजाए जरतनी जेम ब खंडनुं राज्य कर्यु. सगर राजाने जन्दुकुमार प्रमुख साठ हजार पुत्र थया. तेए दंड रत्नथी गंगा नदीने असल प्रवाहथी फेरवी, कैलास पर्वतनी चारे वाजुए खाश् खोदी, ते खाश्मां गंगा नदीने लाव्या. तेए एवो विचार कर्यों के अमारा वडील जरतजीए था पर्वत उपर सुवर्ण रलमय श्री रीषनादि तीर्थंकरोना मंदिर बनावेल . तेनी रदा वास्ते श्रा पर्वतनी चारे बाजुए खाइ खोदी तेमां गंगानो प्रवाह लाववो जोइए. ते प्रमाणे गंगानो प्रवाह लाववाथी अने प्रथम खाइ खोदवाथी नागकुमार देवताउँने बहुज उपसर्ग थयो, तेथी नागकुमार देवताए ते साठ हजार पुत्रोने मारी नांख्या. गंगाना जलथी देशमां पण बहुज उपजव थयो, जेथी सगर राजाना पौत्र जगीरथे सगरनी आज्ञाथी दंडरत्नथी नूमि खोदी गंगाने समुनमा मेलवी. तेज कारणथी गंगानुं ना. म जान्हवी तथा नागीरथी पण कदेवाय बे. सगर राजाए श्री शत्रुजय तीर्थ उपर जरतना बनावेला श्रीरीषजदेवजीना मंदिरनो उद्धार कर्यो, तथा वीजां जैन तीर्थोनो पण उधार कयों. आ समुख पण जरत - त्रमा सगर राजाज देवताना सहायथी लाव्या ले. काना टापुमां वैताट्य पर्वतथी सगर राजानी आज्ञाथी धनवाहन पहेलो राजा थयो, अने लंकाना टापुर्नु नाम राक्षसहीप, तेनो हेतु ए के धनवाहन राजाना वंशजो राक्षस कवाया. या वंशमांज रावण तथा बिनीषणादि थया डे; इत्यादि सगर चक्रवर्तीना समयनो वृत्तांत त्रेसठ शलाका पुरुष चरित्रथी जाणवो. आ चरित्रना तेत्रीश हजार काव्यो , तेथी तेनो सघलो हेवाल आ ग्रंथमां लखी शकातो नथी, मात्र संदेपथी लखेल . सगर चक्रवर्ती राज्य करी श्री अजीतनाथजी पासे दीक्षा ल२, संयम तपथी केवलज्ञान पामी मोदे पहोंच्या. श्री अजीतनाथ स्वामि पण समेत शिखर पर्वत उपर शरीरनो त्याग करी मोक्ष पाम्या, श्री रीषनदेव स्वामिना निर्वाण पली पचास लाख कोडी सागरोपम व्यतीत थये श्री अजीतनाथ तीर्थंकर निर्वाण पाम्या. ते पड़ी त्रीश
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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