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________________ एकादश परिजेद. (५०) लमा एक हता, परंतु श्राचार्योमा मतनेद थवाथी एक मतना बे विजाग, जैन अने बौद्ध थया . वली केटलाएक कहे जे के संवत् ५०० नी लगलग जैनमत उत्पन्न थयेल , अने कोश्क कहे जे के विष्णु जगवाने दैत्योने धर्मन्रष्ट करवावास्ते अहंतनो अवतार धारण करेलो बे, वली कोश्क कहे जे के मबंदरनाथना शिष्योए जैनमत चलाव्यो बे; इत्यादि अनेक दंतकथा चाले बे, ते सर्व जैनमत न जाणवानुं कारण बे. जेम चमार लोको कहे जे के बानु अने चामु बे बेहेनो हती, तेमां बानुनी उलाद सर्व अग्रवालादि वाणीया थया, अने चामुनी उलाद अमे चमार बीए, ते कारणथी वाणीया अने चमार एक वंशना , ह. वे विचार जोशए के चमारोनुं श्रा बोलवू शुं वास्तविक ? अने बुशिवान लोको गुंते बोलवू सत्य मानशे ? तेवीज रीते जे कोश् खमतिकल्पनाथी वा दंतकथा श्रवण करवायी जैनमतनी उत्पत्ति मानशे, ते पण जैनी ने हसवा लायक थशे. सारांश ए बे के प्रथम तो कोश पण मतवाला जैनमतना मूलतत्वोने जाणता नथी. जुर्व के शंकरदिविजय ग्रंथमां श्रीशंकरखामिए जैनमतनुं जे खंडन बखेल डे ते वांचतां अमने हसवं आवे जे. ज्यारे शंकरस्वामिए जैनमतनुं स्वरूपज जाण्यु नथी, त्यारे तेनुं करेलुं जैनमतनुं खंडन, ते पुरुषनी बायाने पुरुष जाणीने लाकडीथी मारवा सर जे. ज्यारे शंकरखामिनेज जैनमतनी माहिती नहोती,तो वर्तमान कालना सामान्य विज्ञानोनी माहिती माटे सुं कहे ? ते कारणथी सर्वे जीज्ञासुने बहुज नम्रता पूर्वक विनंति करीए बीए के जैनमतनो सारी रीते अभ्यास करी, जैनमतनुं खंडन मंडन करवं, नहीं तो शंकरखामि अने रामानुज आचार्योनी जेम तमे पण हसवा योग्य थ पडशो. सजनोने जाणवा वास्ते प्रथम श्रा जगतनुं काश्क स्वरूप लखीए बीए. आ जगतने जैनी अव्यार्थिक नयना मतथी शाश्वत अर्थात् प्रवाह रूपे निरंतर एबुंज माने बे. श्रा जगतमां प्रकारे काल वर्ते बे, तेनेज जैनी आरा कहे . एक अवसर्पिणी काल, अर्थात् सर्व सारी वस्तुनो अनुक्रमे नाश करतो करतो जे काल व्यतीत थाय, तेना उ विजागो , अने बीजो उत्सर्पिणी काल अर्थात् सर्व सारी वस्तुउँने
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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