SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०) जैनतत्त्वादर्श. नूए ते अवसरे साते क्षेत्रमा सातकोड धन वापर्यु. वली संयमनो योग न थाय तो शत्रुजयादि तीर्थोए सुस्थानमां जश्, संलेषणा करी, निर्दोष स्थंडिलमां विधि पूर्वक चार थाहार त्यागरूप आणंद, कामदेव श्रावकोनी जेम अनशन करे. पनी सर्व अतिचारना परिहार चार शरणादिरूप श्राराधना करे. श्राराधना दश प्रकारे थाय बे. १ सर्व अतिचार आलेवे, २ व्रत उचरे, ३ सर्व जीवो साथे खमावे, ५ पोताना आत्माने अढार पापस्थानकोथी व्युत्सर्जन करे, ५ चार शरण ग्रहण करे, ६ गमना गमन कुकृतोनी गर्हणा करे, ७ जे कोइए जीनमंदिरादि सुकृतो कर्यां होय, तेर्डनी अनुमोदना करे, शुज नावना जावे, ए अनशन करे, अर्थात् चार आहार वा त्रण श्राहारनो त्याग करे, १० पंच नमस्कारचं स्मरण करे. श्रा प्रमाणे श्राराधना करवाथी जो ते नवमां मुक्ति प्राप्त न थाय, तो पण सुदेव अथवा सुमनुष्यना श्राउ नव करी अवश्य ते आत्मा मोक्षरूप थाय. श्रा प्रमाणे गृहस्थधर्म करवाथी निरंतर गृहस्थ लोको पा लोक परलोकमां सुख प्राप्त करे बे, अने परंपराए मोक्ष प्राप्त करे . इति श्री श्राझविधि अनुसार श्रावकस्य जन्म कृत्यादि स्वरूपं संपूर्णम् ॥ इति श्री तपगबीय मुनि श्री मणि विजयगणि तबिष्यमुनि श्री बु. झिविजय तविष्य मुनि श्री मुक्तिविजयगणि तस्य लघु गुरुत्रातृ मु. नि आत्माराम आनंद विजय विरचिते जैनतत्त्वादर्श गृहस्थधर्मनिरुपण नामा दशमः परिछेदः ॥ १० ॥ ॥श्रथ एकादश परिछेद प्रारंजः॥ श्रा परिवेदमां श्री रिषजदेव नगवानथी, श्री महावीर स्वामि पर्यंत जैनमतादि शास्त्रानुसार इतिहासरूप पूर्व वृत्तांत लखीए बीए, जेश्री था ग्रंथना वांचनाराउने जैननो सेहेज इतिहास जाणवामां आवशे. वर्तमान समयमा केटलाएक जव्य जीवोनी एवी जीज्ञासा डे के जैनमत क्यारथी प्रचलित थयेल ? वली केटलाएकने एवी ब्रांति ने के, जैनमत बौछमतनी शाखा बे, केटलाएक कहे जे के बौद्धमत जैनमतनी शाखा ने, कारण के तेउनु मानवु एवं के श्रा बने मतो कोश का
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy