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________________ (४२) . जैनतत्त्वादर्श. करे, पूजामां, माला चडाववा प्रमुख कार्योमा देवजव्यनी वृद्धि थाय तेवी योजना करे. केशर, चंदन, बरास प्रमुख अनेक वस्तु यथाशक्ति मुजब प्रति वर्ष आपे. __ सुंदर प्रांगी, पत्रनंगी, सर्वांग बाजरण, पुष्पगृह, कददीगृह, प्रमुखनी रचना करे, विविध यंत्रादिकनी रचना करे, गीत, नृत्यादि महोत्सवकरे, महापूजा रात्रि जागरण करे. श्रुतज्ञान पुस्तक प्रमुखनी पूजा कर्पुरा दियी निरंतर सुगम , अने प्रशस्त वस्त्रादियी विशेष पूजा तो प्रतिमास शुक्ल पंचमीनारोज श्रावके करवी योग्य. जो शक्ति न होय तो पण वर्षमा एकवार तो अवश्य पूजा करे. तेतुं विस्तारथी खरूप ज्ञाननक्ति छारमा लखवामां श्रावशे. ___ पंचपरमेष्टि नमस्कार, आवश्यक सूत्र, उपदेशमाला, उत्तराध्ययनादि ज्ञान दर्शननो तप करीजघन्यथी एकवार उद्यापन (उजमणु) करे; जेश्री लक्ष्मीनी सफलता थाय; ज्यारे जप तप उद्यापन करे, त्यारे चै. त्यउपर कलशारोहण करे, फल चढावे, अदत पात्रना मस्तक उपर श्रत चडावे. जेम जोजन उपर तांबुल अपाय ने तेम, श्राबाबतमा पण जाणवू. उजमणानी विधि शास्त्रांतरथी जाणी बेवी. __ तीर्थोनी प्रजावनावास्ते वाजते गाजते प्रौढ श्राडंबरथी गुरुनो प्रवेशमहोत्सव करावे. आ कथन व्यवहार नाष्यमां बे. तेम करवाथी जिनमतनी प्रजावना थायजे. श्रीसंघर्नु पण यथाशक्ति बहुमान, पूजा, जक्ति करे. नालियेर प्रमुखनी प्रजावना करे, तांबुल प्रदानरूप नक्ति करे, तेम करवाथी शासननी उन्नति थायने, अने शासननी उन्नतिथी तीर्थंकरगोत्र उपार्जन थाय. श्रा कथन ज्ञातासूत्रमा बे. गुरुनो योग प्राप्त थये बते, जघन्यथी वर्षमा एकवार आलोचना ले, पोताना करेला सर्व पाप गुरुनी सन्मुख प्रगट करे,गुरु जे प्रायश्चित्त थापे ते अंगीकार करे, फरी ते पाप न करे, तेनुं नाम आलोचना गृहण करवीने, एम श्राफ जीतकल्पादिमां विधि लखी. पक्षपड़ी, चार मास पड़ी, एक वर्ष पठी, उत्कृष्ट बार वर्ष पड़ी, निश्चयें बालोचना करे, पोताना शट्य काढवावास्ते, देत्रथी सातसो योजन अने कालथी बारवर्षसुधी गीतार्थ गुरुनी अन्वेषणा करे, ते गीतार्थ गुरु केवा होय? मन,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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