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________________ (४७०) जैनतत्त्वादर्श. तथा अर्हत्चैत्य अने साधर्मी वर्जित वासस्थानमां निरंतर अनिवासरूप, तथा पूजा प्रत्याख्यानादि अनिग्रहरूप, साते क्षेत्रमा यथाशक्ति व्यय करवारूप, सर्व परिवारने यथायोग्य धर्मोपदेश कथन करे. श्रावक जो पोताना परिवारने धर्मनुं स्वरूप यथायोग्य न कहे तो ते परिवार धमंथी विमुख रहे,अने ते ने धर्मनी प्राप्ति न थाय, तेथी इह लोक प. रलोकनां अनेक तरेहनां ते पापकर्म करे, ते सर्व पाप मुख्य श्रावकने लागे. लौकिक व्यवहारशास्त्रमा पण कयु के चोरने चोरी करतां जापतां बतां तेने न निवारे अने खानपानादि आपे तो ते सहायक पण मददगार चोर गणाय . धर्ममांपण तेमज जाणवू. ते कारणथी श्रावके अव्य तथा नावथी पोताना कुटुंबने निरंतर लान थापवो जोश्ये. तेमां अव्यथी पुत्र, स्त्री प्रमुखने यथायोग्य अन्न वस्त्रादि आपवां जोश्ये, अने जावथी ते ने धर्मनो उपदेश करवो जोश्ये; तेमज बीजां जे दुःखी कु. टुंबी होय तेउनां उःख निवारवानी चिंता करवी जोश्ये. पाप लागवानी बावतमां अन्यशास्त्रमा पण कडं . यतः॥राज्ञि राष्ट्रकृतं पापं, राज्ञः पापं पुरोहिते ॥ तरि स्त्रीकृतं पापं, शिष्यपापं गुरावपि ॥ १॥ धर्मदेशना थाप्या पड़ी, रात्रिनो प्रथम पहोर व्यतीत थया बाद, शरीरने सुखजनक शय्यामां विधिपूर्वक अल्प निझा करे. बाहुल्यतायें गृहस्थ, मैथुन अनिलाषा वजें, जावजीवसुधी ब्रह्मचर्य व्रत पालवा समर्थ न होयतो, पर्वतिथियें तो अवश्य ब्रह्मचर्य व्रत पाल जोश्य. जे शय्यामां मांकड प्रमुख पड्या होय, जे पलंग टुंको होय, नांगेलो होय, मेली शय्या होय, जे पलंग बबेला लाकडानो बनावेलो होय, तेनो त्याग करे. पलंगमां चार जातसुधीन काष्ठ वपराय तो शुन्न,अने वधारेनुं वपराय-तो अशुन, एम नीतिशास्त्रमा कडं बे. पूजनीय वस्तु उपर सुवे नहि, पाणीथी जीजायेला पग बता सुवे नहि, उत्तरदिशि तथा पश्चिम दिशि तरफ मस्तक राखी सुवे नहि, वांसनी जेम सुवे नहि, पगराखवानी तरफ सुवे नहि, हाथीना दांतनी जेम सुवे नहि, देवमंदिरना मूल गनारामां, सर्पनी बंबी उपर, वृदनी नीचे, तथा स्मशानमा सुवे नहि. कोश्नी साथे लडाइ थर होय तो शांति करी सुवे. सुवानी वखत पाणी पासे राखे. घार बंध करी, इष्टदेवने नमस्कार करी सर्व श्राहारनो त्याग
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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