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________________ दशम परिबेद. (४६ए) दन करे. नोजन कर्या पनी गंठीसहित दिवस चरिम प्रत्याख्यान विधिथी करे; पडी गीतार्थ साधु, गीतार्थ श्रावक तथा सिझपुत्रादि समीप खाध्याय ( पठन पाठन) यथायोग्य करे. योगशास्त्रमा लख्यु डे के जे गुरुमुखथी जणेल होय, ते बीजाउँने नणावे, स्वाध्याय कर्या पड़ी संध्यासमये जिनपूजा करे, पली प्रतिक्रमण करे, पढी खाध्याय करे, पनी वैयावच्च श्रर्थात् मुनिनी पगचंपी करे, पडी घेर श्रावी सर्व परिवारने मेलवी धर्मनुं खरूपकथन करे, उत्सर्गमार्गे तो श्रावके एक वखतज जोजन करवू जोश्ये ॥ यदनाणि ॥ उस्सग्गेणं तु सहोय, सचित्ताहारं वजाJ॥श्कासणगनोश्य, बंजयारितदेवय ॥१॥जो एक वखत जोजन करवाने समर्थ न होय, तो दिवसनो आठमो नाग अर्थात् चार घडी दिवस बाकी रहे त्यारे जोजन करी ले,बे घडी दिवस बाकी रहेतां पहेलां तो नोजन करी लेवं जोश्ये. पड़ी यथाशक्ति चार आहार, त्रण आहार, वे आहार त्यागरूप दिवस चरिम, सूर्यजगतां सुधी करे. मुख्यवृ. त्तियेतो दिवस बतां प्रत्याख्यान करवू जोश्ये, परंतु अपवादें रात्रि पणकरे. इति श्रीतपगडीयगणिश्रीमणि विजयतविष्यमुनिश्रीबुद्धिविजयतलि. प्यमुन्यात्मारामानंदविजयविरचितेजैनतत्वादर्शगुर्जरलाषांतरे श्राफशा- स्त्रानुसारेण श्रावकदिनकृत्यप्रकाशकनामा नवमपरिछेदः संपूर्णः ॥ ॥अथ दशमपरिवेदप्रारंजः॥ आ परिवेदमा श्रावकोनां १ रात्रिकृत्य, २ पर्वकृत्य, ३ चातुर्मासिककृत्य, ४ संवत्सरीकृत्य, ५ जन्मकृत्य, था पांच कृत्यनुं खरूप अनुक्रमें लखवामां आवशे; प्रथम रात्रिकृत्य लखीये बीये. . साधुनी पासे तथा पौषधशाला प्रमुखमां यत्नापूर्वक प्रमार्जना करीने सामायक लही श्रावक प्रतिक्रमण करे; पठी साधुऊनी वैयावच्च (पगचंपी) करे. उत्सर्ग मार्गनी अपेक्षायें साधुने श्रावकपासे विश्रामण थादिन कराव जोश्ये, परंतु श्रावक तेम करवानो नाव करे तो महाफल थाय बे; पठी श्राविधि, श्राझदिनकृत्य, उपदेशमाला अने कर्मग्रंथ प्रमुख शास्त्रोनो खाध्याय करे, पडी सामायक पारी घेर जाय. घेर आवी सम्यक्त्वमूल बार व्रतमां सर्व शक्तिश्री यत्न करणादिरूप
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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