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________________ (५६६) जैनतत्त्वादर्श. बे. वली संवत् १४२ए मां सोनी सिंहा श्रावके श्व० हजार मण अन्न दीन जीवोने उकालमां आपेल बे. ___माता, पिता, नाश, बेहेन, पुत्र, स्त्री, सेवक, ग्लान, बांधेलां गाय प्रमुख जानवरो, श्रा सर्वनी जोजन अवसरें सार संजाल लेवी जोश्ये. मातपिताने नोजन करावि, पंच परमेष्टि स्मरण करी, प्रत्याख्यान पारी, सर्व नियम स्मरण करी, साम्यताथी जोजन करे. साम्यता अर्थात् जे अन्नपाणी परस्पर विरुद्ध न होय, उलटा परिणमे तेवा न होय, पोताना स्वजावने माफक होय तेवु नोजन साम्य कहेवाय जे. जे पुरुष जीवित पर्यंत साम्यताथी जोजन करे, ते कदी विष खा जाय तो, विष पण तेने अमृत थर जाय, असाम्य जोजन करनारने अमृत पण विष यश जाय बे, परंतु अपवाद ए डे के साम्यताथी पण पथ्यज खावू जोश्ये, अपथ्य नही. खावामां अत्यंत गृहिपणुं न जोश्ये. कंठनाडिथी ज्यारे जोजन नीचे उतरी जाय , त्यारे सर्व जोजन बराबर थश्जायचे; ते कारणथी एक क्षणमात्रना स्वादने वास्ते अतिलोलता न करवी जोश्ये. वली अजय, अनंतकाय, बहु सावद्यवस्तु अर्थात् बहु पापवाली वस्तु खाय नहि. जे मिताहार करे जे ते बलवान् थाय बे, अने जे बहु खाय ते ते अनुक्रमें बलहीन थाय . अधिक खावाथी अजीर्ण, वमन, विरेचनादि मरणांत कष्टपण थइ जाय . यथा ॥ हितमितविपक्कनोजी, वामशयी नित्यचंक्रमणशीलः॥ उज्जित मूत्रपुरीषः, स्त्रीषु जितात्मा जयति रोगान् ॥ अर्थः-जुख लागे त्यारे हितकारी एवं थोडं अन्न जमे, डाबी वाजु नीचे राखी सुवे, निरंतर चालवानो अभ्यास राखे, ज्यारे बाधा थाय त्यारे तरत दिशामात्रा करे, अने स्त्री साथे जोग न करे ते पुरुष रोगोउपर जय मेलवे . हवे नोजन विधि, व्यवहार शास्त्रानुसार लखिये बीये, अति प्रजातमां, अति संध्यामां तथा रात्रि जोजन न करवू जोश्ये. सडेबुं श्रने वासी अन्न न खावु जोश्ये. चालतां खावु नहि, जमणा पग उपर हाथ राखी खावु नहि, हाथ उपर राखी खावु नहि, खुला आकाशमां खावू नहि, तडकामां बेसी खावु नहि, अंधारामां बैसी खावु नहि, वृदनी नीचे वेसी खावु नहि, तर्जनी शांगली उंची राखी कदापि खावू नहि, मुख,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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