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________________ - नवम परिवेद, (४५५) चित आचरण अर्थात् स्नेहवृति, कीर्त्यादिहेतु कार्य करवां, ते हितोपदेशमाला ग्रंथानुसार लखीये बीये. नवजनोनी साथे उचित आचरण करवां तेउनां नाम.१ पिता, २ माता, ३ बंधु, ४ स्त्री, ५ पुत्र, ६ स्वजन, गुरु, ७ नगरवासी लोक, ए परतीर्थिको अर्थात् बीजा मतवाला. १ पितानी साथे उचित आचरण आप्रमाणे, ते मन, वचन, कायाथी त्रण प्रकारें थायजे. तेमां कायाश्री पिताना शरीरनी शुश्रूषा करवी, किंकरनी जेम विनय, वैयावच्च करवी, पिताना मुखमांथी निकलता पेहेला तेना अंतःकरणनो व्यापार समजी तेनी अभिलाषा पूर्ण करवी, पितानुंवचन उपाडी बेवं, प्रसंगें पितानां चरणप्रदालन करवां, पितानी चंपीकरवी, वृद्धपिताने उठतां, बेसतां आश्वासना करवी, देशकाल उचित,स्वशक्ति अनुसार जोजन, शय्या, वस्त्रादि विनयपूर्वक पितानी श्राज्ञानसार श्रापवां, पितानी चाकरी पोते करवी,नोकरो पासे प्रसंग शिवाय कराववी नहीं; पितानुं वचन पालवा वास्ते श्रीरामचंञजी राज्यानिषेकनो त्याग करी वनवास गया, ए दृष्टांत ध्यानमा राखQ. वली पितानुं वचन सुएयु अणसुएयुं न करवू, मस्तक धूणावq नहि, कालदेप करवो नहि, पितानी थाज्ञानुसार वर्त्त, सर्व कार्यो यत्नपूर्वक पोताना मनमा करवानो उत्साह थयो होय ते पितानी पासे प्रगट करवो. पिताने जे कार्य कर वास्तविक लागे ते करवू, पिता, माता, गुरु श्रने बहुश्रुत थाराध्यां थकां, सर्वकार्य, रहस्य प्रकाश करे . पिता कदाचित् कठिन वचन बोले तो पण क्रोध न करवो, पितानां जे जे धर्मकार्य करवाना मनोरथ थाय ते ते पुरा करवा. २ हवे मातानी साथे उचित आचरणनुं स्वरूप कहीये बीये. पितानी जेम मातानी सर्वप्रकारें नक्ति करे, परंतु माताना मनोरथ पिताथी श्रधिक पूरा करे. देवपूजा, गुरुसेवा,धर्मश्रवण करवू, देशविरति अंगीकार करवी, श्रावश्यक करवां, सात क्षेत्रमा धन वावरवं, तीर्थयात्रा करवी, श्रनाथदीननो उद्धार करवो इत्यादि सर्व माताना मनोरथ विशेषरीतें पू. र्ण करवा. ए प्रमाणे पूर्ण करे तोज उचित आचरण कर्यां समजवां. उत्तम सुपुत्रने ते प्रमाणे करवानी फरज , कारण के मातापितानो उपकार अतुल्य , ते उपकारनो बदलो नथी. कदाच मातापिताने सुपुत्र श्री श्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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