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________________ (३७) जैनतत्त्वादर्श. मुन्यात्मारामानंदविजयविरचित जैनतत्त्वादर्श (नाषांतरे )श्रावकनिरूपण नामा अष्टमपरिछेदः संपूर्णः॥ ॥अथ नवमपरिछेदप्रारंजः॥ श्रावकोनां न कृत्यो बे. १ दिनकृत्य, रात्रिकृत्य, ३ पर्वकृत्य, ४ चातुर्मासिक कृत्य, ५ संवत्सरकृत्य, ६ जन्मकृत्य, तेमांथी प्रथम दिनकृत्यविधि, आ परिछेदमा श्राफविधिग्रंथ तथा श्रावककौमुदी शास्त्रानुसार लखिये बियें. प्रथम तो श्रावके निझा अल्प लेवी जोश्ए. ज्यारे एक प्रहर रात्रि शेष रहे, त्यारे निझा तजी उठवु जोश्ए. कोश्ने बहु निमा आवती होय ती पण जघन्यथी चौदमा ब्राह्ममुहूर्त्तमां अवश्य उठवू जोश्ए. सवारमा वहेला उठवाश्री इहलोक परलोकनां अनेक कार्य सिद्ध थाय डे, ते अवसरें बुद्धिपण निर्मल, सुंदर होय . पूर्वापर विचार बहुज सारी रीतें थर शके . ग्रंथकार एम पण लखे डे के निरंतर जेने सूतां सूतां सूर्योदय यश् जाय, तेनुं आयुष्य अल्प थाय बे; तेथी ब्राह्ममुदूर्त्तमां अवश्य उठवू जोश्ए. ज्यारे निशानो त्याग करी उठे, त्यारे मनमां विचारे के हुँ श्रावकबु, पोताना घरमा सुतो हतो के बीजाना घरमा सुतो हतो? नीचे सुतो इतो के उपरमाले सुतो हतो? दि वसना सुतो हतो के रात्रिना सुतो हतो? इत्यादि विचार करतां निप्रानो वेग न मटे तो नासिका तेमज मुखनो श्वासोवास रोके, तेम करवाथी निमा तत्काल दूर थर जाय बे, पनी हार सारी रीते तपासी जरुर होय तो लघुशंकादि करे. रात्रिमा जागतां कोश्ने कांश कहेवु पडे तो, मंदखरथी कहे, जंचे खरे शब्दोच्चार करे नहि. जंचा खरथी बोलवाथी रात्रिमा उपकली प्रमुख हिंसक जीव जागी जाय तो माखी प्रमुख अनेक जीवोनी ते हिंसा करे . कसा जागी जाय तो, गाय, ब. करी, घेटा प्रमुखने मारवाने चाल्यो जाय बे, माबी जाल लश् पोतार्नु काम शरु करवा जाय बे, वाघरी, श्राहेडी, मदिरापानी, खुनी, परस्त्रीलं. पट, तस्कर, लूटारा, धोबी, घांची, कुंजार प्रमुख अनेक हिंसा करनारा जीवो जागवायी अनेक तरेहनां पापकर्ममा प्रवृत्त थर जाय . या सर्व
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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