SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम परिछेद. (३७) तकृत्य थयो; वली श्रावा मुनिराजनो योग क्यारे मले ? एवी अनुमोदना वारंवार करे, था चोथो गुण बे. ___५ जेम कोश मंद जाग्यवान् व्यापार करतां थोडं थोडं कमाय, तेने को दिवस को सोदामां लाख रुपैयानी प्राप्ति थ जाय, त्यारे जेवो ते आनंदित थाय, अने फरी तेज व्यापारनी जेवी चाहना राखे, तेनाथी पण अधिक, श्रावक साधुने दान देवानी चाहना राखे. था पांचमो गुण बे. या पांच गुण युक्त दान आपे तो अतिथिसंविजाग व्रत होय. श्रा व्रतना पांच अतिचार वर्जवा, ते लखीए बीए. १ सचित्त निक्षेप अतिचार. सचित्त पृथ्वी, जल, कुंज, चूला, इंधनादि उपर साधुने न देवानी बुद्धिथी आहार राखे; मनमां एवो विचार करे के साधु तो आहार लेशे नहि, परंतु निमंत्रणा करवाथी मारू अतिथिसंविजाग व्रत बन्यु रहेशे. आ प्रथम अतिचार. २ सचित्त पीहण अतिचार. आहारने सचित्त वस्तुथी ढांके, सूरण, कंद, पत्र, पुष्पादिथी न देवानी बुद्धिथी ढांकी राखे तो बीजो अतिचार. ३ कालातिक्रम अतिचार. साधुने जिदानो काल वित्या पली, अथवा निक्षा काल पहेला, अथवा साधु थाहार करी रह्या होय ते पड़ी, श्राहारनी निमंत्रणा करवा जाय तो त्रीजो अतिचार. ४ परव्यपदेश अतिचार. साधु ज्यारे याचना करे, त्यारे क्रोध करे; पोतानी पासे वस्तु होय बता, मागतां आपे नहि वली थापे तो पण एवा विचारथी के आवा गरीब लोको साधुने आपे ले तो, तेर्जनाथी शुं हुं गरीब ढुं ते न आपुं? आवी जावनाथी आपे तो चोथो अतिचार. ५ गोल, खांड प्रमुख पोतानी वस्तु होय, ते न आपवानी बुद्धिए पारकी कहे, अने पारकी वस्तु होय ते आपवानी बुछिए पोतानी कहे तो श्रा पांचमो अतिचार. इति श्री अतिथिसं विजागवतं संपूर्ण. __ सम्यक्त्वपूर्वक बारव्रतरूप, गृहस्थ धर्म, खरूप धर्मरत्न प्रकरण, तथा योगशास्त्रादि ग्रंथानुसार संक्षेपमात्र लखेल जे; विशेष जाणवानी अजिलाषावालाए धर्मरत्नशास्त्र वृत्ति, तथा योगशास्त्र जोवां. इतिश्रीतपोगडीयगणिश्रीमणिविजयतविष्यश्रीमुनिबुझिविजयतविष्य
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy